Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan

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Page 171
________________ मारवाड़ की जल संस्कृति / 387 पानी के लिये पनघट पर जाने के लिये खुद को सजाना-संवारना ही पर्याप्त नहीं था, इसके साथ अच्छा कलश, सुन्दर घड़ा रखने के लिये बनाई “ईडाणी” का महत्व भी कम नहीं था। "म्हारी सवा लाख की लूम, गम गई ईडाणी" हीरों, मोतियों से जड़ी, लूमा लटकती ईडानी को सिर पर रखकर तथा उस पर घड़ा और घड़े पर 'चरी' (छोटा पात्र) को उठाकर जब वह छम छम करती पनघट पर जाती तो सबकी नजरें अनायास ही उसकी ओर मुड़ जाती। इस स्थिति में उस नायिका का मन प्रमुदित व उल्लासित हुए बिना नहीं रह सकता था। इसके अलावा परिवार में विवाह के समय “सरवर नेतणा" (सरोवर को न्यौता देना) भी एक संस्कार था। गृह लक्ष्मी प्रतिदिन जिस तालाब के तीर पर पानी के लिये जाती अर्थात् जिस सरोवर देव के द्वार पर नित्यप्रति जाना होता, उसे विवाह के मांगलिक अवसर पर आमंत्रित करने से कैसे चूका जा सकता है? ___ इसी तरह की अनेक परम्पराएं व संस्कार जल संस्कृति से जुड़े हुए हैं। देवझूलनी एकादशी पर ठाकुरजी की मूर्ति को 'रेवाड़ी' (डोली) में विराजमान करवाकर सरोवरों पर स्नान करवाने ले जाया जाता है। तीज त्यौहारों पर 'लोटिये' (बड़ेबड़े लोटौं पर तुर्रा श्रृंगार कर) भरकर लाने का कार्य गाजे बाजे से किया जाता है। इसके अलावा पर्व विशेष पर दीपदान करने की परम्परा भी प्रचलित है। जोधपुर में प्राकृतिक जी की वर्तमान स्थितिकिसी भी सुरक्षित राजधानी के लिये मुख्य दो आवश्यकता होती हैं, प्रथम सुरक्षित स्थान, दूसरा जल। मेहरानगढ़ दुर्ग का मुख्य द्वार फतेहपोल रखा गया जहां जलस्रोत, उसके आस-पास अधिक संख्या में है। चांदपोल से सूरसागर तक 21 बावड़ियाँ, 15 कुएं और दो झालरे हैं। इसके अलावा माचिया के पास तालाब बनाया गया। फिदूसर तालाब, धोबी तलाई, रानीसर, पदमसर, जोधा नाडी इत्यादि। इसके अलावा विसंगड़ी का तालाब, टाके, नाडियाँ आदि का निर्माण कराया गया। भूमि के जल की अधिकता चांदपोल से रावटी तक के पहाड़ी क्षेत्र में भूमिगत पानी को अधिक सोखते हैं और बरसात होने से लेकर मार्च तक इन पहाड़ों की शिराओं में पानी रिसता रहता है। इस रिसाव के कारण भूमि की अरी सतह पर जल अधिक है, इसलिये वहां जलस्रोत अधिक मात्रा में निर्मित किये गये, जो किसी नये शहर की पहली आवश्यकता होती है। आजकल जोधपुर में एक ज्वलंत खबर है कि अण्डर ग्राउण्ड में पानी भर रहा है, जोधपुर पानी पर तैर रहा है इत्यादि। यह कोई साल दो साल में घटित परिवर्तन या चमत्कार नहीं है; यदि आप शहर के अंदर बने मकानों की चबूतरियां या चौतंरियों को देखें, सोजती गेट के बाहर जो बेरियां, कुएं आदि हैं, वहां के मकानों की चौतरियां सामान्य से ऊंची बनाई गयीं क्योंकि उस जमाने में भी वहां पानी भरता था। जोधपुर में जितने कुएं, बावड़ियाँ हैं शायद ही किसी और शहर में इतने जलस्रोत हो। शहर के मकानों में भूतल (Under ground) बने हुए हैं। उनका उपयोग जानवरों को बांधने के लिये होता था। आज से 60-70 वर्ष पहले भी इनमें पानी भरता था और उसके निकासी के पारम्परिक मार्ग बनाये जाते थे। जोधपुर के पुराने ठेकेदार यदि पुराने शहर में कोई नवीन मकान बनाते तो पहले भूमिगत पानी की निकासी रखकर उसके बाद मकान बनाते थे। अधिक गहराई में जल नहीं है केवल ऊपरी सतह पर जल अधिक है और उसमें बढ़ोतरी का कारण गटर लाइनें, टूटी नालियां, पानी की निकासी के मार्ग पर अतिक्रमण और मकानों के बनने के कारण भूमि में जल बढ़ रहा है। पथरीली जमीन पानी कम सोखती है। नागौरी गेट, महामंदिर, रामगढ़ी का पानी सबके पारम्परिक निकासी के मार्ग बने थे, वहां पानी आना स्वाभाविक है और वह अतिरिक्त पानी मकानों के भू-तलों में जमा हो रहा है।

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