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धारा 66 यह प्रावधान करती है कि स्त्रियों को किसी भी कारखाने में 6 बजे प्रातः से 7 बजे सांय तक की अवधि के उपरान्त की अवधि में काम करने की न तो अपेक्षा की जाएगी और न ही आज्ञा दी जाएगी, लेकिन राज्य सरकार को कतिपय परिस्थितियों में इसमे ढील देने की अनुमति है, जैसे मत्स्य-- उपचार या मत्स्य कैनिंग के कारोबार में जहाँ कि कथित निर्बन्धनों की सीमा से बाहर की अवधियों में काम करना आवश्यक हो, ताकि कच्चे माल की बिगड़ने या क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके। यह छूट सिर्फ एक सीमा तक दी जा सकती है तथा महिलाओं को 10 बजे रात्रि से 5 बजे प्रातः तक के नियोजन मुक्त रखना आवश्यक है। इस प्रसंग में ओमान वूमेन बनाम ए.सी.टी. लिमिटेड (1991) के बाद उल्लेखनीय है कि जिसमें कर्मचारियों को नियमित रूप से आत्मसातकरण हेतु ली जा रही आन्तरिक परीक्षा में महिला कर्मकारों को शामिल किए जाने से इस कारण मना कर दिया गया कि वे स्त्रियाँ थी तथा कारखाने की रात समेत सभी पालियों में काम करने में अक्षम थी। लिंगभेद के आधार पर महिलाओं को परीक्षा से वंचित किया जाना संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 15 का उल्लंघन करार देते हुए केरल उच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि स्त्रियाँ केवल रात 10 बजे से प्रातः 5 बजे तक ही उपलब्ध नहीं हैं, बाकी पालियों में वे पुरूषों के साथ काम करने में सक्षम हैं अतः उन्हें परीक्षा बैठने का अधिकार है।
मार्च, 2005 में केन्द्रीय सरकार ने महिलाओं को फैक्टरी में रात की पारी में काम करने की अनुमति प्रदान करने हेतु कारखाना अधिनियम, 1948 में संशोधन करने का निर्णय लिया है। वर्तमान संदर्भ में सूचना तकनीक आधारित कार्यों के कारण अनेक कार्य रात की पारी में ही सम्पन्न होते हैं, अतः महिलाओं को रात की पारी में कार्य करना आवश्यक होता जा रहा है। महिलाओं को रात में कार्य करने एवं आवागमन की सुरक्षित एवं समुचित दशाएँ प्रदान करने का प्रावधान करने की घोषणा भी सरकार ने की है। . कारखाना अधिनियम की धारा 79 मजदूरी सहित छुट्टी की गणना में किसी स्त्री कर्मकार द्वारा ली गई बारह सप्ताह से अधिक की प्रसूति छुट्टी का आंकलन करने का प्रावधान करती है। अध्याय 9 की धारा 87 में राज्य सरकार को यह शक्ति दी गई है कि खतरनाक जोखिमभरी क्रियाओं वाले कारखानों में स्त्रियों तथा बच्चों के नियोजन पर रोक लगा सकती है।
मातृत्व प्रत्येक स्त्री का पवित्र अधिकार तथा ईश्वर द्वारा दिया गया दायित्व है, जिसकी पूर्ति करते हुए वह स्वयं को धन्य मानती है। प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 शिशु प्रसव से पूर्व और उसके बाद की कुछ अवधि में स्त्रियों के नियोजन को विनियमित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इसका उद्देश्य महिला कर्मकारों को सामाजिक न्याय प्रदान करना है। उच्चतम न्यायालय ने अपने विनिश्चयों में कहा है कि अधिनियम के उपबन्धों का निर्वचन करने में न्यायालय को उदारवादी नियम का पालन करना चाहिए जिससे कि न केवल महिला कर्मकारों का भरण--पोषण हो सके, बल्कि वे अपनी क्षीण शक्ति को पुनः प्राप्त कर सकें, शिशुओं का पालन-पोषण हो सके तथा अपनी पूर्ण कार्यक्षमता को बनाए भी रख सकें।
प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम की धारा 4 के अनुसार उद्योग में नियोजित प्रत्येक महिला को प्रसव तथा गर्भपात के लिए सब मिलाकर 12 सप्ताह का विश्राम पाने का वैधानिक अधिकार प्राप्त है। कई राज्यों में तथा कई सेवाओं में प्रसूति अवकाश बढ़ाकर 135 दिन कर दिया गया है। इस अधिकार को प्रदान करना नियोजक के लिए बन्धनकारी है, क्योंकि यह प्रावधान आदेशात्मक है। अधिकारों को प्रदान न करने पर उसे दोषसिद्धि किया जा सकता है। कोई भी नियोजक जानबूझकर ऐसी महिला को काम पर नहीं लगाएगा, जिसे 6 सप्ताह के अन्दर ही बच्चे को जन्म देने की सम्भावना है। ___ इसी से जुड़ा हुआ दूसरा अधिकार है कि प्रसव से 6 सप्ताह की छुट्टी पर जाने के एक माह पूर्व यदि वह स्वामी से लिखित प्रार्थना करती है कि उसे अधिक और भारी काम न लिया जाए, जिससे उसको तथा होने वाले