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भारत में महिला श्रमिक : दशा एवं दिशा / 425
6. इसके अतिरिक्त जो उद्योग गृह आधारित तथा गृह आधारित कार्यों में महिला मजदूरों को ज्यादा संकेन्द्रण है यथा-बीड़ी, पापड़, सिवई निर्माण कार्य वाले उद्योग, ___7. कई बार इनको समान काम के असमान वेतन दिया जाता है। साथ ही पदोन्नति, प्रशिक्षण के समान अवसरों से भी वंचित रखा जाता है।
8. मजदूर संगठन में निम्न भागीदारी, अशिक्षा, श्रम नियमों के जानकारी का अभाव, जैसे कारणों के कारण उन्हें वाजिब मजदूरी नहीं मिल पाती और आर्थिक शोषण का शिकार हो जाती हैं,
9. असंगठित क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश महिला श्रमिकों को सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी नहीं मिल पाता। उन्हें अधिकांश स्थितियों में न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी दी जाती है;
10. इसके द्वारा अर्जित मजदूरी पुरूष प्रधान समाज में एक पूरक आय के रूप में देखा जाता है;
11. सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में महिलाएँ नर्सिंग, टीचिंग, सेल्स गर्ल्स, रिसेप्सनिस्ट, प्राईवेट सेक्रेटरी जैसे भूमिकाओं में ज्यादा नजर आती हैं।
12. कानूनी प्रावधान में वर्णित कई सुविधाएँ जैसे मातृत्व हितलाभ से बचने के लिए कार्य के लिए तैयार महिला श्रमिकों को रोजगार पर रखने से बचते हैं जो कि कानून के विरूद्ध है, तथा ___13. संगठित क्षेत्र जिसमें सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र आते हैं, उसमें महिला कामगार मुख्य रूप से बड़ी संख्या में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी में लगी। प्रबंधक एवं प्रशासक स्तर इनकी संख्या तुलनात्मक रूप से कम है।
महिला श्रमशक्ति
देश की जनसख्या एक महत्वपूर्ण हिस्सा महिलाओं का है। भारत की जनगणना 2001 के अनुसार कुल मानव संसाधन का लगभग 48 प्रतिशत महिलाएं हैं। संख्यात्मक दृष्टिकोण से देश की लगभग 48.52 करोड़ मानव पूंजी हैं। जिसका उचित प्रबंध कर किसी भी देश या संस्था का कायाकल्प किया जा सकता है। आवश्यकता है उचित अभिप्रेरणा का प्रभावी ढंग से सदुपयोग किया जाए।
संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में महिला श्रमिक
रोजगार के स्तर, उसकी गुणवत्ता, पद-सोपान क्रम, मजदूरी आदि मामलों में आज भी महिला श्रमिक पुरूष श्रमिक से तुलनात्मक बहुत पीछे है। यद्यपि विभिन्न कार्यक्रमों, नीतियों, कानूनों के माध्यम से इन दोनों लिंगों के मध्य इस कमी को पाटने के प्रयास हाल के कुछ दशकों से काफी तेजी से हो रहे हैं। संगठन के स्वरूप के आधार यदि हम देखें तो, भारत में जो रोजगार उपलब्ध है, वह दो मुख्य क्षेत्रों में है- संगठित क्षेत्र तथा असंगठित क्षेत्र। संगठन का तात्पर्य यहां आर्थिक गतिविधियों का आकार-प्रकार, उत्पादन स्तर, उत्पादन करने की प्रकृति, श्रमिकों के संगठन की स्थिति आदि।
संसार के विकासशील देशों की भाँति भारत में अधिकांश महिलाएँ असंगठित क्षेत्रों में कार्यशील है। असंगठित क्षेत्रों में मुख्य रूप से कृषि, खान, खदान, मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, व्यापार, होटल, रेस्तराँ, सामुदायिक, सामाजिक सेवा, परिवहन एवं संचार जैसे क्षेत्रों में रोजगार पाती हैं। भारत के दस प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग उत्पादक उद्योग हैं जिसमें महिलाएँ बड़ी तादाद में नियोजित हैं (द्वितीय श्रम आयोग 2002 : 943) ये हैं -(1) तम्बाकू, (2) सूती वस्त्र, (3) काजू प्रसंसाधन, (4) मशीनरी टूल्स एवं पार्टस, (5) माचिस, विस्फोटक तथा आतिशबाजी, (6) मिट्टी, ग्लास, सीमेंट, लोहा तथा स्टील, (7) ड्रग्स एवं मेडिसीन, (8) मिल एवं बेकरी, (9) गारमेंट।