Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan

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Page 187
________________ सल्तनत काल में प्रौद्योगिकी विकास : ऐतिहासिक सर्वेक्षण / 403 लगाने के कार्य पर विगत में केवल मुसलमान कारीगरों का एकाधिकार था। बारुद और अग्नि-शस्त्र का अविष्कार चीन में हुआ इसमे बारुद का शोरा, गंधक और चारकोल होता है। इसका उपयोग चीन से इस्लामिक देशो में गया और बाद में भारत पर तुर्को के अधिकार के बाद 13 वीं सदी के अन्त में एवं 14 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यह तकनीक भारत में आई। फिरोजशाह तुगलक के समय में इसका उपयोग केवल अतिशबाजी तक ही सीमित था अग्नि शास्त्रों के रुप में सर्वप्रथम प्रयोग 15 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोपीय अग्नि-शस्त्रों का प्रयोग पुर्तगालियों द्वारा किया गया, जब वे 1498 ई. में कालीकट आये। कलई का उपयोग घरेलु तांबे और पीतल के बर्तनों में खाद्य सामग्री को विषक्तता से बचाने के लिए किया जाता था। बर्तन पर टिन का आवरण लगाया जाता था यह तकनीक भी भारत में तुर्को के साथ आई। प्राचीन भारत में इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। कलईगार बर्तनों को एक छोटी भट्टी पर धौकनियो की सहायता से गर्म करता था और रुई की सहायता से शुद्ध टिन और नौसादर के मिश्रण को लगाया जाता था, जिससे नौसादर का बाष्पीकरण हो जाता और धातु का धरातल साफ निकल आता था इसी दौरान टिन पिघलता है तथा रुई से नौसादर चारों और रगड़कर पूरे बर्तन में फैला दिया जाता था जिससे बर्तन कलाईदार हो जाता था। अबुल फजल ने आइने-ए-अकबरी में कलई का उल्लेख इस प्रकार किया हैं। नावों व जहाज का निर्माण भारत में लकड़ी से होता था, जिसे नारियल के छिलकों से बने रस्सों द्वारा जोड़ दिया जाता था। इसमें लकड़ी की कीलों का ही प्रयोग किया जाता था। समुद्री यात्राओं के लिए मुसलमानों द्वारा भारत में चुम्बकीय दिशा सूचक (कुतुबनुमा) का उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। सल्तनतकालीन भारत में शराब बनाने के संदर्भ भी प्राप्त होते हैं। बरनी ने उल्लेख किया हैं कि शक्कर के किण्वित गाढे शरबत से व्यापक रुप से शराब निकाली जाती थी सम्भवतः इस भभके के आगमन के बाद ही शराब की शुरुआत हुई। __भवन निर्माण उद्योग में प्रौद्योगिक परिवर्तन मेहराबों और गुम्बदों के व्यापक उपयोग के रुप में देखा गया इसके साथ चूना-गारे से जुड़ाई और मेहराबी छत की ढलाई नाजुक अहमियत के नये तथ्य थे। इस नई तकनीक से ईंट और पत्थर की बड़ी इमारतों का निर्माण सम्भव हुआ। तुगलकाबाद के या बाद के खण्डर देखें तो शायद कह सकते हैं कि मध्यवर्ग के घरों का लकड़ी और घासफूस के ढाँचे से ईंट के ढांचों में परिवर्तन मुलतः सल्तनत काल में ही हुआ। सल्तनतकाल में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करवाये गये अलाऊद्दीन ने अपनी इमारतों के लिए 70000 कारीगर रखे थे। इसके बाद मुहम्म्द तुगलक व फिरोज तुगलक ने भी बड़े पैमाने पर इमारतों का निर्माण करवाया। सल्तनत काल में प्रौद्योगिक क्षेत्र में समग्रतः विचार करने पर ऐसा लगता हैं कि विवेच्यकाल में जो प्रौद्योगिकीय परिवर्तन हुए वे किसी भी दृष्टि से कम महत्वपूर्ण नहीं थे। जल यंत्र के रुप में अराहट मिला, वस्त्र तकनीक में चरखा व बुनाई की तकनीक प्राप्त हुई तथा कम लागत वाली तकनीक के रुप में सीधी-साधी छपाई व्यवस्था, कागज तकनीक, भवन निर्माण व युद्धकला सार्वभौमिक रुप से स्थापित हुई। संदर्भ : ' इरफान हबीब के कई शोधों का संदर्भ लेख में प्रस्तुत हैं ' एग्रीकल्चर टेक्नालॉजी इन अर्ली मेडाइवल इण्डिया (500-1300 ई.) ३द मेकिंग ऑफ अर्ली मेडाइवल इण्डिया + हबीब, इरफान, चेंज इन टेक्नोलॉजी इन मेडाइवल इण्डिया, स्टडीज इन हिस्ट्री, वोल्यूम II (1), 1980, पृ. 17 'पूर्ववत, पृ. 17 : इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ दिल्ली सल्तनत, इण्डियन हिस्टोरिकल रिव्यू, वोल्यूम (3), पृ. 287-298 • हबीब, इरफान, डिस्ट्रिब्यूशन ऑफ लैडड प्रोपर्टी इन प्रि. ब्रिटिश इण्डिया, इनक्वायरी, दो अंक-3 (1965) पृ. 52-53

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