Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan
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410 / Jijñāsā
तहसीलों में विभक्त थी। भुक्ति प्रशासन की सवोच्च संख्या थी। कान्यकुब्ज को भुक्ति कहा गया है जो गुर्जर प्रतिहार राज्य की राजधनी (स्कन्धावार) थी। प्रांतीय तथा जिले की प्रशासनिक ईकाई भी थी।
नगर प्रशासन के सम्बन्ध में अभिलेखों में उत्तर सभा गोष्ठी पंचकुल सोवियक जैसे प्रान्तीय अधिकारियों के नाम मिलते हैं। उत्तर सभा गोष्ठी का सम्बन्ध दान से सम्बन्धित कार्य प्रणाली से था। यह सभा धार्मिक अनुदानों का प्रबन्धन करती थी और शासकीय स्थिति में प्राप्त अधिकारों का निर्वहन करती थी। पंचकुल में पांच या उसके अधिक सदस्य हो सकते थे। प्रतिहारकाल में इन्हें "वार नाम से संबोधित किया जाता था। सीयदोणी में दो और ग्वालियर में तीन वारिस थे। इनका काम, करो की वसूली, सार्वजनिक धन का लेन-देन, धर्मार्थ निधियों, सार्वजनिक कार्यों की व्यवस्था तथा नगर जीवन से सम्बन्धित सभी विषयों का प्रबन्धन करना था इनकी मदद के लिए स्थाई वेतन धारी कर्मचारी रहते थे। आहड़ अभिलेख से पता चलता हैं कि कंचन श्री देवी मन्दिर के लिए दुकानों की खरीद के समय कई स्थानीय अधिकारी उपस्थित रहे। दण्डपाशिक (पुलिस अधिकारी) चतुर्वेदी ब्राह्मण (तट्टनाद पुर सभा में थे) इन सबकी अनुमति से रिकार्ड रखने और लिखने की अनुमति दी गई। सभा में राजकीय तथा गैर राजकीय व्यक्ति सम्मिलित थे।
अभिलेखो के स्थानीय प्रशासन के संदर्भ में ग्राम के अधिकारियों के नाम भी मिलते हैं ग्राम प्रशासन का उत्तरदायित्व ग्रामपति (ग्राम का प्रमुख), महत्तर (ग्राम का मुखिया), कुटुम्बिक तथा महत्तर पर था। बी.एन. पुरी मानते है कि महत्तम और महामहत्तम एक जैसा पद था। ये ग्राम के वृद्ध व्यक्ति थे जो प्रशासनिक सलाहकार होते थे। कुटुम्बिक (Householder) मध्यग (मध्यस्थ) के अतिरिक्त पंचकुलिक नामक अधिकारी होते थे।' महत्वपूर्ण बात यह है कि इन समितियों का निश्चित अवधि पर पुर्नसंगठन होता था यद्यपि कार्यकाल निश्चित नही है। अतः हम कह सकते है कि इसके सदस्य स्थाई नही थे बदलते रहते थे। बहुत सभव है केन्द्रीय अधिकारी इनका निरीक्षण करते हो और इन पर राजा का नियंत्रण रहता हो।
भौगालिक दृष्टि से प्रतिहार साम्राज्य सबसे बड़ा और अपेक्षाकृत दीर्घजीवी साम्राज्य था। यह असंभव है कि इतने विशाल क्षेत्र पर प्रतिहार केन्द्र से शासन चलाते थे। अतः प्रशासनिक सुविधाओं के लिए अनेक बड़ी छोटी -- प्रशासकीय ईकाईयों में साम्राज्य बांटा गया था। उनकी अधीनता मानने वाले सांमत शासक जिनकी संख्या बहुत अधिक थी वे अपने अपने क्षेत्रों में प्रशासनिक ईकाइयों द्वारा शासित थे। वे अपने प्रभु की अधीनता मानते, युद्धों में भाग लेते थे।
प्रतिहार अभिलेखों में कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक अधिकारियों के उल्लेख में मिलते हैं। सीयदोणी अभिलेख में महाराज धुवभट्ट को राज्यपाल कहा गया है जबकि दूसरे अभिलेख में इन्द्रभट्ट को महाप्रतिहार महा सांमत कहा गया है। सीयदोणी से महेन्द्रपाल के अनेक अभिलेख मिले है किंतु इन दोनों अधिकारियों के बीच सम्बन्ध सपष्ट नही होता। दूसरा उदाहरण प्रतापगढ़ अभिलेख से है जहा उज्जैन के राज्यपाल माधव द्वारा चाहह्मान महासांमत इन्द्रराज के कहने पर इन्द्रादित्य देव के पक्ष में ग्राम दान किया। ऐसा लगता है कि माधव उज्जैनी का गवर्नर प्रांतीय शासक था और यह पद महासांमत के पद से ऊंचा था और श्रेष्यकर भी वह सामन्तो पर नियंत्रण भी रखता था। इसी तरह चालुक्य सांमत जो नई पीढ़ियों से प्रतिहारों के सांमत थे। इस वंश के महासांमत बल वर्मा को ग्रामदान के लिए महेन्द्रपाल प्रथम के उच्च अधिकारी तंत्रपाल श्रीधिका से अनुमति लेनी पड़ी थी। सीयदोणी (ललितपुर) और उज्जैनी में तो राज्यपाल नियुक्त थे जबकि काठियावाड़ में तंत्रपाल नियुक्त थे। प्रतापगढ़ अभिलेख में माधव को तंत्रपाल महासांमत तथा महादण्ड नायक कहा गया है। ऐसा लगता है वह अलग अलग विभागों की जिम्मेदारी भी निबाहता था। ऊणा और प्रतापगढ़ दोनों अभिलेखों में तंत्रपाल का नाम आया है। अतः