Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan

Previous | Next

Page 196
________________ 412 / Jijnasa पर विपरीत प्रभाव डाला | लम्बे समय तक संघर्ष करने के कारण छोटे सामन्त प्रमुखो का विकास हुआ। आर. एस. शर्मा कहते है प्रतिहारों की शासन व्यवस्था कार्य प्रणाली ने उपसामन्तीकरण का मार्ग प्रशस्त किया। इसका मुख्य कारण था दान प्रणाली। सांमत शासक दान में भूमि देते थे तो वे राजस्व वसूलने, खेती करने के अधिकार भी दान ग्रहीता को दे देते थे। यद्यपि यह कहना कि उपसामन्तीकरण प्रतिहारों के पतन के लिए उत्तरदायी था, उचित नहीं क्योंकि इससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रतिहार शासक सामन्तो पर नियंत्रण अपने अधिकरियों के माध्यम से रखते थे। यहां तक कि दान की अनुशंसा राज्य और उसके अधिकारियों की अनुमति के बिना संभव नहीं थी। स्थानीय अधिकारी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था प्रतिहार काल में चाणक्य द्वारा सुझाए गए, अमात्य, मत्रिन् जैसे पदों का वर्गीकरण स्पष्ट रुप से दिखाई नही देता वरन् यहां समस्त पद, अधिकारी जैसे रहे हैं। किंतु उपाधियों युक्त पदों से लगता है कि वे तुलनात्मक रुप से उच्च स्तरीय रहे होगे, जैसे सांधिविग्रहिक अक्षपटलिक आदि पद परम्परागत जैसे लगते है। राजा के दैवीय अधिकारों से युक्त होते हुए भी शासन का विकेन्द्रीकरण दिखाई देता है। इससे राजा की शक्ति कम नही होती। प्रशासनिक अधिकारी दूरस्थ प्रान्तो में राजा की आज्ञाओं का पालन करते थे किंतु यह कहना उचित नहीं कि वे सामन्तीय अधिकारों का उपभोग करते थे। इतना ही नही वे तो सामन्तो पर भी नियंत्रण रखते हुए प्रतीत होते है। अल्तेकर सामन्तो को श्रेणियों में बांटते है: बड़े सामन्त जो पूर्ण आंतरिक स्वायतता के अधिकारों का प्रयोग करते थे। उनके उपसांमत भी होते थे।दूसरे छोटे सांमत जिनकी स्वतंत्रता बहुत कम थी जो भूमिदान से पहले अपने अधिपति की अनुमति लेते थे। सम्राट के प्रतिनिधि उनको ओर से दानपत्र को जारी करने थे। निकृष्ट श्रेणी के सांमत जिन पर सम्राट का नियंत्रण और हस्तक्षेप अधिक रहता था। इतना ही नही अनेक अधिकारी जब उनका पद वंशानुगत होता था तब वे सामत बनने लगते थे। केन्द्रीय शक्ति मजबूत रहती थी तब अधिकारियों की शक्ति कम रही किंतु जैसे ही केन्द्रीय सत्ता कमजोर हुई उनकी शक्ति बढ़ने लगी। प्रतिहार काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि, पशुपालन, व्यापार, अन्तरराज्यीय व्यापार आदि था। अभिलेखों में गिल्ड, व्यवसाय, कारीगर, खेतीहर, सिंचाई व्यवस्था, आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र, दूरसंचार व्यवस्था, आंतरिक एवं बाह्य व्यापार के विवरण प्राप्त होते हैं, तथा विनिमय मुद्रा द्वारा होता था इस समय बांट, नाप तथा व्यापार के सभी अन्य महत्वपूर्ण तत्व मौजूद थे। इस समय महत्वपूर्ण संस्था, जिसे गिल्ड या श्रेणी कहा जाता था, का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान था।" गिल्ड या श्रेणियां व्यवसाय के अनुसार बनाई जाती थी। जैसे कुंभकार, स्थापति नाम (शिल्पकार) आदि इन श्रेणियों के सदस्यों को कर देना पड़ता था। व्यापारी प्रत्येक खरीद फरोख्तपर उपकर लगाते थे। खरीदने वाले और बेचने वाले दोनों पर कर लगता था। यहां तक कि राज्य को भी व्यापारिक आदान-प्रदान करने पर उपकर देना पड़ता था। जैसे कुंभकार प्रत्येक चाक पर हर माह एक पण कर देता था। जबकि शिल्पकार एक द्रम देता था। मण्पिका यह संस्था भी थी (चुंगी गृह) जो करो की राशि को प्राप्त करते थे। ये श्रेणिया बैंक की तरह भी कार्य करती थी। वे खर्चे के लिए उधार पैसा देते थे, जो नहीं चुका पाता था तो उसे सजा भी दी जाती थी। गोष्ठिया दान भी करती थी। व्यापारिक लेन-देन में उन्हें स्वायतत्ता के अधिकार मिले हुए थे। ___ इन श्रेणियों की कार्यप्रणाली काफी विशिष्ट थी। ग्वालियर अभिलेख से अक्षय नीवि अर्थात दीपक जलाने के लिए तेल की व्यवस्था करने वाली तैलीय श्रेणी का पता चलता था। जिसके प्रमुख को तैलिक महत्तम कहा गया

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236