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शेखावाटी क्षेत्र के सांस्कृतिक विकास में व्यापारिक मार्गों का योगदान / 397
वास्तु शास्त्र की दृष्टि से शेखावाटी का अपना निराला स्थाना है ऊँचे मरबों वाले जलकूप, श्मशानों की छतरियाँ हवेलियों की ऊँची कुर्सियाँ, मेहराब वाले दरवाजे, हवेलियों के छज्जे और गोखे अपना अलग ही आकर्षण रखते है। एक जमाने में जब ये भारत का प्रमुख व्यवसाय केन्द्र रहा था उस समय की यदि कल्पना की जाए तो मस्तिष्क में सहसा ही एक बहुत खुबसूरत चित्र अंकित हो जाता है शेखावाटी की संस्कृति और कला की जानकारी हमें इस क्षेत्र की हवेलियों में मिलती है। शेखावाटी के झुन्झुनु में टीबड़े वालों की हवेली, ईसरदास मोदी की सैकड़ों खिड़कियों वाले भव्य इमारतें है । ईसरदास मोदी की इस विशाल हवेली में 360 खिड़कियां है एवं दो बड़े चौक और 6 हॉल है चौक की दीवारों पर भित्ति चित्रों के कारण और हवेली कलात्मक द्वारों के लिए पहचानी जाती है। बाजार के मध्य इस हवेली को देखकर तारादत्त निर्विरोध ने सुन्दर विचार इस प्रकार व्यक्त किये है।
"छोड़ आया था जिसे मैं मौन, मुझको आंकती होगी। यह गुलाब गंध अब भी खिड़कियों में झांकती होगी।"
मण्डावा सागरमल लड़िया की हवेली, रामदेव चोखानी की हवेली, मोहनलाल नेवटिया, रामनाथ गोयनका की हवेली, हरीप्रसाद बढारिया की हवेली पर्यटकों का विशेष आकर्षण है चूसी अजितगढ़ में शिवप्रसाद नेतानी की हवेली भी अपनी कलात्मकता का परिचय देती है इस हवेली के शिवालय की छतरी में श्री कृष्णकालीन रासलीलाएं संगमरमरी प्रस्तरों पर अंकित है मेहनसर स्थित सेठ राम पोदार की सोने-चाँदी की हवेली में रंगों की चमक, ज्यामितीय आकारों की बनावट, छत एवं दीवारों में शीशों की जड़ावत बहुत ही सुन्दर तरीके से की गई है। इस प्रकार पिलानी, झुन्झुनु, चिड़ावा, सीकर, नवलगढ़, बिसाऊ, मंडावा, अलसीसर, फतेहपुर, मुकुन्दगढ, बग्गड़, रामगढ़ आदि जगहों पर देश के प्रमुख उद्योगपतियों और सेठों की हवेलियाँ है जो एक आंगन से लेकर पांच आंगन तक और एक से पांच मंजिल तक की है। ये हवेलियाँ वर्षों पुरानी दास्तानं आज भी बयां करती नजरआती है। इन हवेलियों की मुख्य विशेषता उन्नत अधिष्ठान, एक पार्श्व पर विविध भित्ति चित्रों से आभूषित बैठक और मुख्य द्वार के भीतर विशाल प्रांगण के चारों ओर बने सुन्दर कक्षों की व्यवस्था है हवेली के सभी पार्श्व चित्रांकित है।
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हवेलियों के साथ मन्दिरों और छतरियों का भी निर्माण करवाया जाता था। झुन्झुनु जिले के मारवाड़ियों द्वारा बहुत ही सुन्दर मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। इस क्षेत्र में झुन्झुनु, नवलगढ़, पिलानी, गण्डावा, उदयपुरवाटी आदि में नवीन शैली में बने देव मन्दिर है पिलानी का सरस्वती मन्दिर प्रारूप की प्राचीनता लिए हुए नवीन युग की कला सामग्री का रमणीक प्रतीक है। नई शैली में बने मन्दिर उन्नतोदर, विशाल विस्तीर्ण एवं कला पूर्ण है । 19वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में छतरियां अधिक बनी थी। इनमें सीकर (गनेडी) मण्डावा, मलसीसर, नवलगढ़, बिसाऊ, डूंडलोद आदि नगरों की छतरियां महत्वपूर्ण है। मण्डावा में भागचन्द की छतरी ( 1850 ई.), हरलाल की छतरी (1853ई). गोयनका परिवार की छतरी (1860ई.) बहुत उत्कृष्ट चित्रकारी से युक्त है गोयनका छतरी में दशावतार के चित्र एवं चित्रकार की सुन्दर शबीह भी बनी है। ये चित्र लोककला के निकट है। डूंडलोद (1888 ई.) में बनी रामदत्त गोयनका की छतरी में भी कई धार्मिक दृश्य बने हुए है उदयपुरवाटी में जोगीदास की छतरी के भित्ति चित्र यहां की चित्रांकन परम्परा के प्राचीनतम उदाहरण प्रस्तुत करते है; जो ढ़लते मुगलकाल का प्रतिनिधित्व करते है। बड़े तालाब के किनारे बनी यह छतरी खण्डेलवाल शाह भगवानदास के पुत्र जोगीदास की है। आठ स्तम्भों वाली इस छतरी के चित्रों में राजपूत व मुगल शैलियों का अद्भुत संगम दृष्टिगत है।
शेखावाटी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में पीने का पानी की बड़ी समस्या थी, लेकिन यहाँ के लोगों ने जो बावड़ियाँ व कुओं का निर्माण किया वह आज भी लोगों को पानी उपलब्ध करवाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। कुओं का निर्माण में पानी की कमी, मांगलिक भावना और लोकसेवा की भावना थी। कुंए पूजने की प्रथा आज भी