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मारवाद की जन्न संस्कृति / 381
खुद को तो चाहे घी और बाटी के दर्शन ही न हो परन्तु मेह (मेघ वर्षा) के स्वागत के लिये घी-बाटी का विशेष भोजन जुटाने की भावना मुखर रहती है। हमने अतिथि को "मेहमान" इसलिये कहा क्योंकि- "मेह ने पावणा, कदैई कदै ई आवे” ।
और फिर थोड़ी सी वर्षा प्रारम्भ होते ही जन-जन के मन में आह्वान की उमंग। मन को कली कली खिल उठेगी और मेघराजा के बधावणे शुरू - आबाल-वृद्ध सभी खुश
" आयौ बाबो परदेशी - नाडानाडी भरदेशी” "मेह आयौ मादाळियो आयो धरती धारौ धणी आयौ ।
गाडौ भर गेवां रौ लायौ ऊपर घी रौ चाडौ लायौ ।।”
जल के महत्व को स्वीकार कर हमारे पूर्वजों ने इसके संग्रह एवं उपयोग के कई उपाय किये। कुएं, बावड़िये, तालाब खुदवाने, झालरे टांके आदि बनवाने जैसे जन कल्याणकारी कार्य किये। फिर इनमें संग्रहीत पानी की शुचिता की रक्षा के लिये भी कई तरह के उपाय, नियम, परम्परायें बनाईं जिन्हें हम आज परम्परागत जलस्रोत कहते हैं। ये पानी की तत्कालीन समस्या के समाधान के प्रतीक रहे हैं। ऐसे कार्य राज्य स्तर पर, राजा-महाराजाओं के पारिवारिक सदस्यों के स्तर पर, उनके अधीनस्थ जागीरदार, सेठ साहुकारों तथा अन्य समर्थ जनों की तरफ से किये जाते रहे हैं।
मारवाड़ के इतिहास का सिंहावलोकन अगर इस दृष्टि से किया जाय तो राव जोधाजी के समय से ही ऐसे प्रयासों के संदर्भ इतिहास में मौजूद मिलेंगे
मारवाड़ राज्य की राजगद्दी पर राव जोधाजी का राज्याभिषेक वि.सं. 1515 में हुआ। इस अवसर पर उन्होंने अपने निकट सहयोगियों को यथायोग्य पारितोषिक देकर संतुष्ट किया और उन्हीं दिनों उन्होंने अपने निकट सहयोगियों को यथायोग्य पारितोषिक देकर संतुष्ट किया और दिनों उन्होंने मण्डोर के पास "जोवेलाव" तालाब बनवाया । वि.स. 1516 में उन्होंने जोधपुर का किला मेहरानगढ़ बनवाया और जोधपुर नगर बसाया। तब उनकी हाड़ी रानी जसमादे जी ने किले के पास 'रानीसर' (रानी सागर) नामक तालाब बनवाया। उनकी दूसरी रानी सोनगरी (चौहानजी) चांदकुंवरजी ने "चांद बावड़ी” नामक वापिका का निर्माण करवाया ।' पण्डित रेऊ ने इसी में आगे लिखा है कि इसी वर्ष जोधाजी नापाजी सांखला की सहायतार्थ जांगलू प्रदेश गये, वहां उनकी माताजी कोड़म देवीजी के बनवाये तालाब कोड़मदे - सर की प्रतिष्ठा करवाई ।
राव जोधाजी के समय मण्डोर क्षेत्र में 36 कुएं बावड़ियां एवं तीन तालाब थे।' राव जोधाजी के पुत्र राव सातलजी ने संवत् 1545 में राजगद्दी संभाली। इनकी रानी भटियाणी फूलकंवरजी, जो खंडेला से थी, ने फूलेलाव तालाब व बावड़ी सम्वत् 1546 में बनवाई।
राव जोधाजी के प्रपौत्र राव सूजाजी के पौत्र राव गांगाजी ने जोधपुर की राजगद्दी वि.सं. 1752 में संभाली। इन्होंने 'गांगेलाव' तालाब तथा “ गांगा बावड़ी" बनवाई। जिसका विस्तार इनकी रानी सिसोदणी पद्मावती ने करवाया। इनके समय में मेवाड़ के सेठ पदमसाह ने पदमसर बनवाया।
राव गांगाजी के उत्तराधिकारी उनके पुत्र राव मालदेवजी संवत् 1588 में राजगद्दी पर बैठे। इन्होंने भी अनेकानेक जनकल्याणकारी कार्य करवाये। जोधपुर के किले का विस्तार मरानीसरफ नालाब तक करवाया. इसके कारण किले वालों को पानी की सुविधा हो गई चिड़ियानाथजी की धूणी के मार्ग पर "नौसल्या" कर्जा इन्होंने ही बनाया था जो अब " पतालिया बेरा" के नाम से जाना जाता है। इनकी झाली रानी स्वरूपदेजी ने "स्वरूप सागर” नामक तालाब बनवाया जो आजकल बहूजी के तालाब के नाम से प्रसिद्ध है। 10 इमरती बावड़ी व इमरती पोळ इन्होंने करवाई। मेड़तिया दरवाजा के पास मालासर तालाब करवाया। चौपड़ भुरज के आगे नींबासर बनवाया। 12