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भारतीय राष्ट्रिकों द्वारा चीन का निर्माण / 375
संस्कृत के कई शब्द चीन में लोकप्रिय हुए, जैसे तान शियांग (चंदन) चान (ध्यान) येहच (यक्ष) मो (मारा) येन वेंग (यम) मोली (मल्लिका), पोली (स्फटिक), शिह-चू (दानपति), पाओ-यिन (फल) एवं चाओ-यिह (कर्म) इत्यादि। 600 ई. के बाद पंचतत्र और हितोपदेश की कहानियों ने चीनी जनमानस को भारतीय बना दिया। बौद्ध कहानियों में संयुक्तावदान सूत्र, सशंयुक्तरत्नपिटकसूत्र, शतपारमितासन्निपातसूत्र, पूर्णमूखअवदानशतक, जातकमाला एवं सूत्रअलंकारशास्त्र, कथा, आदि आज चीनी साहित्य में विशद रूप में संग्रहीत है। अश्वघोष का बुद्धचरित का चीनी अवतरण अत्यंत प्रभावोत्पादक है। कालिदास के मेधदूतम् गीतिकाव्य एवं दण्डिन के काव्यादर्श ने चीनी साहित्य को समृद्ध किया। शिन एवं तांग वंश (तीसरी से छठी शती) में कई भारतीय ग्रंथो का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। चिन के हमू के अनुसार इन भारतीय ग्रंथो ने चीनी भाषा के साथ-साथ चीन के लोक साहित्य को बदल के रख दिया। ऑरेल स्टीन ने चीन के तुनहुआंग गुफा से ढेर सारे साहित्य एवं कलाकृतियों की खोज की जिनके निर्माण में भारतीयों ने अमूल्य सेवा दी थी। पॉल पेलियट बाद में इन्हें चुराकर फांस ले गया।
आधुनिक शोध बता रहे हैं कि चीनी थियेटर में नाटक और नृत्य पर भारतीय प्रभाव को कोई भी नकार नहीं सकता। चीन के नृत्य और संगीत का विकास भारतीयों के निर्देशन में हुआ था। चीनी नाटकों में आज भी भारतीय विषयो की बहुलता है। इस बात का उल्लेख 19 वीं शताब्दी में चीन गए भारतीय यात्रियों ने अपने वर्णन में किया है।
चीन के तुनहुआंग गुफा की चित्रावलियों और अजन्ता के चित्रों में गजब की समानता है जैसे बोधिसत्व, तथागत, अवलोकितेश्वर, अरहत तथा मार के चित्रों को तुनहुआंग की कला दीर्घा में देखा जा सकता है। चीनी चित्रों में भारतीय चित्रकारी के छ: नियमों की पालना की गई है। चीन में पैगोडा जैसे मंदिर भारतीय शिल्प-शास्त्र के प्रभाव में बनाये गए है।
पेकिंग स्थित शीतकालीन राजमहल में सफेद पैगोडा, पेकिंग का नीला बादल महाविहार, तथा पंच पैगोडा महाविहार बोध गया के महाविहार के अनुकरण हैं। नेपाल के अरनिको नामक वास्तुकार ने भारतीय वास्तुशास्त्र पर आधारित चीन में कई इमारतों का निर्माण किया।
सुई वश के राजदरबार में भारतीय संगीतकारों का बोलबाला था। तांग राजवंश के इतिहास ग्रंथों में भारतीय संगीतकारों, नर्तकों एवं बाजीगरों की विशद चर्चा है। सम्राट हुआंग के दरबार में भारतीय संगीत और नृत्य का प्रतिदिन प्रदर्शन होता था। पहले चीनी संगीत में पंचनाद होते थे। परन्तु भारतीय प्रभाव में सम्राट वु के समय (561-578) से चीनी संगीत सप्तनाद में बदल गया। संगीत के स्केल और तीव्रता में भी बदलाव किया गया। ताओ चिह नामक चीनी संगीत विशारद ने भारतीय और चीनी गेय शैलियों को मिलाकर एक ऐसी शैली विकसित की, जिससे चीनी भाषा में अनूदित संस्कृत के श्लोकों को गाया जा सके, जिन्हें बाद में गेयगल्प के रूप में जाना गया और चीनी दरबार में चारण इन्हें गाया करते थे। बौद्ध धर्म के पीठ पर सवार होकर भारतीय संस्कृति ने सम्पूर्ण एशिया में अपनी धाक जमाई। भारतीय अनुवादकों ने भारतीय साहित्य चीनी भाषा में अनुवाद किया, फलस्वरूप भारतीय संस्कृति और चीनी संस्कृति का संश्लेषण प्रारम्भ हुआ। संधदेव नामक अनुवादक ने चीन में रहकर भारतीय ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। इन्होंने संघरक्षित द्वारा अनुमोदित सैकडों पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। बुद्धभद्र नामक भारतीय विद्वान ने नानकिंग में रुककर फाहियान द्वारा भारत से लाये गए 117 भाग के ग्रथों का चीनी में अनुवाद किया। पुण्ययात्रा, बुद्वयसस, विमलाक्ष एवं धर्मयसस ने कई भारतीय ग्रंथो का चीनी में अनुवाद किया। बुद्धजीव एवं गुणवर्मन ने भी अनुवाद का काम किया।
गणभद्र नामक विद्वान, जो कि 435 ई में कैन्टन गया था, ने गणित, खगोल, ज्योतिष, चिकित्सा एवं हिन्दूधर्म के कई प्रामाणिक ग्रंथों का चीनी में अनुवाद किया। महायान शाखा के धर्मलक्षण-दर्शन की कई पुस्तकों का प्रणयन गुणभद्र ने चीनी भाषा में किया था। चेन टी, जिनका भारतीय नाम 'परमार्थ था और जो 548 ई में नानकिंग