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थोकडा संग्रह।
तत्व, ५ आश्रय तत्व, ६ संवर तत्त्व, ७ निर्जरा तख, ८ बंध तत्व, ६ मोक्ष" तत्व ।
प्रथम जीव तत्त्व के लक्षण तथा भेद ।
जीव तत्त्व-जो चैतन्य लक्षण, सदा, स-उपयोगी असंख्यात प्रदेशी, सुख दुःख का बोधक, सुख दुःख का वेदक एवं अरूपी हो उसे जीव तत्व कहते है । जीव का एक भेद है कारण, सब जीवों का चैतन्य लक्षण एक ही प्रकार का है इस लिये संग्रह नय से जीव एक प्रकार का होता है।
जीव के दो भेद-१ त्रस, २ स्थावर, अथवा १ सिद्ध, २ संसारी।
जीव के तीन भेद-१ स्त्री वेद, २ पुरुष वेद, ३नसक वेद, अथवा १ भव्य सिद्धिया, २ अभव्य सिद्धिया ३ नोभव्य सिद्धिया नोअभव्य सिद्धिया ।
७ जवि के साथ कर्मों का संयोग होना-जड़ (अजीव ) वस्तु का मेल होना पाश्रव है।
म जीव के साथ कमों का संयोग रूक जाना, जड़ से मेल नहीं होना संवर है।
जीव के साथ अनादि काल से जड़ पदार्थ (कर्म) मिला हवा है उस जड़ पदार्थ कर्म-का थोड़ा २ दूर होना निर्जरा है।
१० जवि के साथ जड़ वस्तु-कर्म-का संयोग होने के बाद दोनों का (लोह अग्नि वत् ) एक मेक हो जाना बन्ध है।
११ जीव का कर्मों से अलग होजाना-पूगर छुटकारा होना मोक्ष है।
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