Book Title: Jain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Author(s): Rujupragyashreeji MS
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 7
________________ प्रथम इकाई में सत् का स्वरूप, द्रव्य-गुण-पर्याय, षड्द्रव्य, परमाणु और लोकवाद का विवेचन है। - --- .. द्वितीय इकाई में आत्मा का स्वरूप, आत्मा के भेद-प्रभेद, आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि, आत्मा का परिमाण, आत्मा-शरीर संबंध तथा पुनर्जन्म का विवेचन है। तृतीय इकाई में जैन आचार का आधार और स्वरूप, नौ तत्त्व, रत्नत्रय, गुणस्थान, षडावश्यक और दस धर्म का विवेचन है। चतुर्थ इकाई में श्रमणाचार, श्रावकाचार, ग्यारह प्रतिमा, जैन जीवनशैली, इच्छा-परिमाण और संलेखना-संथारा का विवेचन है। पंचम इकाई में अहिंसा का स्वरूप, अहिंसा प्रशिक्षण, अणुव्रत आन्दोलन, अणुव्रत : आचार संहिता, स्वस्थ समाज संरचना का आधार तथा अणुव्रत के कार्यक्षेत्र का विवेचन है। मैं अत्यन्त आभारी हूँ विश्वविख्यात अपरिमेय ज्ञानपयोनिधि अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञजी के प्रति, जिन्होंने मुझे जैन विद्या का अध्ययन करवाया और इस क्षेत्र में कार्य करने हेतु अवसर और आशीर्वाद प्रदान किया। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की माननीया कुलपति महोदया डॉ. समणी मंगलप्रज्ञा का मार्गदर्शन एवं यथेष्ट सहयोग भी मुझे समय-समय पर मिलता रहा है। कम्प्यूटर टंकण का कार्य मोहन ने जिम्मेदारी के साथ कुशलतापूर्वक किया है। सभी के प्रति हृदय से आभार और कृतज्ञता। आशा है 'जैन तत्त्व मीमांसा और आचार मीमांसा' का अध्ययन करने वाले विद्यार्थी वर्ग के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी। वे न केवल तत्त्व-मीमांसा और आचार-मीमांसा का ज्ञान कर सकेंगे अपितु अपने जीवन में ज्ञान और आचार का संतुलन साध सकेंगे। व्यक्तिगत जीवन में शांति, प्रेम, मैत्री, करुणा, अहिंसा, संयम आदि मूल्यों को आत्मसात् करते हुए स्वस्थ समाज की संरचना में अपना योगदान दे सकेंगे, ऐसा विश्वास है। डॉ. समणी ऋजुप्रज्ञा (ii)

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