Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 9
________________ ॥ श्री वीतरागाय नम ।। लघु दर्शन-पूजा आदि का अपूर्व संग्रह सातवाँ भाग दर्शन पाठ संग्रह ॐ जय जय जय, नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु ।। णमो अरिहताण, णमो सिद्धाण, णमो आयरियाण ।। णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्व साहूण ।। (१) देव स्तुति सकल ज्ञेय ज्ञायक तदपि, निजानन्द रसलीन । सो जिनेन्द्र जयवत नित, अरि रज रहस विहीन । जय वीतराग विज्ञान पूर, जय मोह तिमिर को हरन सूर । जय ज्ञान अनन्तानत धार, दृग-सुख-वीरज मडित अपार ।। जय परमशात मुद्रा समेत, भविजनको निज अनुभूति हेत। भवि भागन वश जोगेवशाय, तुमधुनिह सुनि विभ्रम नशाय ॥ तुम गुण चितत निज-पर विवेक, प्रगटै विघटै आपद अनेक ।। , तुम जग भूषण दूपण वियुक्त, सव महिमा युक्त विकल्पमुक्त ।। - अविरुद्ध शुद्ध चेतनस्वरूप, परमात्म परम पावन अनूप ।। शुभअशुभ विभाव अभावकोन, स्वाभाविकपरिणतिमय अछीन ।।. अष्टादश दोष विमुक्त धीर, स्वतुष्टयमय राजत गभीर ।' मुनिगणधरादि सेवत महत, नय केवल लव्धिरमा घरत ॥ तुम शासन सेय अमेय जीव, शिवगये जाहिं जै हैं सदीव ।, भव सागर मे दुख छार वारि, तारन को और न आप टारि । यह लखिनिज दुखगद हरणकाज, तुमही निमित्तकारण इलाज । जाने तातै मैं शरण आय, उचरो निज दुख जो चिर लहाय 10»

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