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प्रश्न २४ - " कैसा निर्णय किये बिना" जल से पूजा करना बनता हो नहीं ?
उत्तर - जैसे - सागर मे जब भरतो का [ ज्वार का ] समय हो, तब सूर्य का ११८ डिग्री का ताप भी उसे नही रोक सकता है तथा जब ओट का [ भाटा का ] समय हो तब २५ डच बरसात पडता हो और सम्पूर्ण नदियो का पानी उसमे आकर मिलता हो, तब भी वे भरती नही ला सकती, उसी प्रकार जब अपना ज्ञान समुद्र अन्तर मध्य बिन्दु से उछले, तब बाहर की प्रतिकूलता कुछ भी विघ्न नही कर सकती तथा जब स्वय अपराधी होकर हीनता करे तब बाहर की इन्द्रियां, शास्त्र, दिव्यध्वनि, गुरु की वाणी आदि कोई भी उसकी सहायता नही कर सकते हैं । इसलिए ससार की अनुकूलता और प्रतिकूलता रहित मेरा स्वभाव है उसका निर्णय अनुभव किये बिना जल से यथार्थ पूजा करना वनता हो नहो ।
प्रश्न २५ - बादल हमे क्या शिक्षा देता है ?
उत्तर - क्षारं जल वारिमुचः पिवन्ति, तदेव कृत्वा मधुरं वमन्ति ! सन्तस्थता दुर्जन दुर्वचान्सि, पीत्वा च सूक्तानि समुद्रगिरिन्ति ॥ अर्थ - जिस प्रकार बादल खारा जल पीकर भी मीठा पानी देता है; उसी प्रकार दुष्ट पुरुषो की कठोर वाणी को सुनकर भी ज्ञानी को मीठा और सबका प्रिय लगने वाली वाणी बोलने का भाव आता है और भी कहा है कि
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गौरव प्रात्यते दानात्, न तु वित्तस्य संचयात् । स्थिति रुच्च पयोदाना, पयोघोनामधः स्थितिः ॥ अर्थ- दान से वडाई मिलती है, सचय करने से नही मिलती । घन के सचय करने से बडा नही कहलाता, दान देने से गौरव मिलता है।
जैसे पानी देने वाला बादल ऊचा है ओर संग्रह करने वाला समुद्र नीचे है; उसी प्रकार यदि वक्ता भी श्रोता से मान या घन मांगे त