Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 301
________________ उत्तर-प्र=विशेश करके जैसा वस्तु स्वरूप है वैसा ही । माण= ज्ञान मे आना। प्रश्न १६७-प्रमाण-प्रमेय-प्रमाता का अर्थ है ? उत्तर-प्रमाण =जैसा वस्तु स्वरूप है वैसा ही ज्ञान मे आना । प्रमेय-ज्ञ य । प्रमाता-जानने वाला। प्रश्न-१६८-~भाव दीपिका मे सम्यग्दृष्टि को प्राप्त क्यो कहा है । जब कि आप्त का लक्षण वीतराग, सर्वज्ञ, हितोपदेशी है ? उत्तर-(१) जैसे-खजांची लाखो रुपया का लेन देन करता है परन्तु उसे अपना नही मानता, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि को राग के स्वामीपने के अभाव के कारण वीतराग कहा है। (२) सर्वज्ञसम्यग्दृष्टि को जितना ज्ञान का उघाड है और जितने पदार्थों को जानता है । उन्हे जानता ही है और जानने का कार्य मेरा है । मैं पर पदार्थों का करू या भोगू ऐसी एकत्व बुद्धि का अभाव होने से मात्र उनको जानने के कारण सर्वज्ञ कहा है । (३) हितोपदेशी--तुम अपने आश्रय से ही शुद्धता प्रकट करो दया-दान-पूजा आदि भाव आस्रव-बन्ध का कारण है । निमित्त से उपादन मे कार्य नही होता है। कार्य उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादनकारण से ही होता है। ऐसा हित का उपदेश ही सम्यग्दृष्टि को वाणी मे आने से उसे हितोपदेशी कहा है। इसलिए भाव दीपिका मे सम्यग्दृष्टि को आप्त कहा है । आप्त के तीन भेद हैं (१) अरहत भगवान = उत्तम आप्त हैं। (२) ५ वे गुणस्थान से १२ गुणस्थान तक मध्यम आप्त है । (३) ४ गुण-स्थान वाला जघन्यआप्त है। प्रश्न १६६-श्री पंचास्तिकाय गा० ३ मे “समवाओ" शब्द आया है उसमे अमृतचन्द्रचार्य ने कौन-कौन से अर्थ निकाले हैं ? उत्तर-तीन शब्द निकाले हैं। (१) समवाद, (२) समवाय, (३) समअवाय । प्रश्न १७०-समवाद (शब्द समय) किसे कहते हैं ? उत्तर-राग-द्वप रहित शब्द को अर्थात् समदर्शिता की उत्पन्न करने वाला कथन, (भगवान की वाणी को) शास्त्रारूढ निरूपण वह

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