Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 318
________________ ( ३१०) उत्तर-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान चार भेद मतिनान के हैं, और आगम यह श्रुतज्ञान है। प्रश्न २१०-स्मृति किसे कहते हैं ? उत्तर-पूर्व मे देखी हुई वस्तु को स्मरण पूर्वक वर्तमान मे जानना, जैसे-सीमन्धर भगवान ऐसे थे उनकी वाणी ऐसी थी . समवशरण ऐसा था इत्यादि पूर्व मे देखी हई वस्तु को वर्तमान में याद करके जाने-ऐसी मतिज्ञान की ताकत है। प्रश्न २११-प्रत्यभिज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर-पूर्व मे देखी हुई वस्तु के साथ वर्तमान वस्तु का मिलान करना; जैसे-पूर्व मे जिन सीमन्धर भगवान को देखा था उनके जैसा ही इस प्रतिमा की मुद्रा है, अथवा पूर्व मे भगवान के पास मैंने जिस आत्मा को देखा था वह यही आत्मा है ऐसा मतिज्ञान जान सकता है। जैसे-श्रेयान्स राजा ने आदिनाथ भगवान को देखते ही पूर्वभव मे मैं इनकी पत्नी ये मेरे पति थे-हमने मुनिराज को आहार दान दिया था इस प्रकार आहार की विधि याद आ गई–देहादि सभी सयोग अत्यन्त पलट गये होने पर भी मूतिज्ञान की निर्मलता की कोई ऐसी ताकत है कि "पूर्व मे देखा हुआ आत्मा यही है" ऐसा वह नि शक जान लेता है । जगत को ज्ञानी के ज्ञान की ताकत की पहिचान होना कठिन है। प्रश्न २१२-तर्क किसे कहते है ? उत्तर-ज्ञान मे साधन-साध्य का सबध जान लेना, जैसे जहाँ 'घूम हो वहाँ अग्नि होती है, जहाँ अग्नि ना हो वहाँ घूम नही होती। जहाँ समवशरण हो तीर्थकर भगवान होते है, जहाँ तीर्थकर भगवान 'ना हो वहा समवशरण नहीं होता । अथवा जिस जीव को वस्त्र ग्रहण है उसे श्रद्धा गुणस्थान नही होता, छठा गुणस्थान जिसके हो उसे वस्त्रग्रहण नही होता। इस प्रकार हेतु के विचार से ज्ञान करना यह तर्क है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323