Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 299
________________ ( २६१ ) दुखी है । न माने और स्वभाव का आश्रय ले, तो तुरन्त कल्याण हो जावे | प्रश्न १५६ - जैन किसे कहते हैं और जैन कितने प्रकार के है ? उत्तर - अपनी आत्मा के आश्रय से मोहराग द्वेष को जीत लिया हो - वह जैन है । कुल जैन सात प्रकार के हैं । प्रश्न १६० - जैन कितने प्रकार के हैं ? उत्तर तीन सच्चे जैन हैं और चार झूठे प्रकार के जैन हैं । प्रश्न १६१ - तीन सच्चे जैन कौन-कौन से हैं ? उत्तर- (१) उत्तम जैन सातवे से १२ वे गुणस्थान ४-५-६ गुणस्थानवर्ती जीव । = अरहत और सिद्ध । (२) मध्यम जैन गुणस्थान तक । ( ३ ) जघन्य जैन = = प्रश्न १६२ -- चार झूठे प्रकार के जैन कौन-कौन से हैं ? उत्तर - (१) सधैया = जो रोज मन्दिर जाते है, शास्त्र पढते है, लेकिन शास्त्र का मतलब क्या है ? इसका पता नही । यह तो जैसे अन्य मतावलंबी है, वैसे यह रहे । (२) भदैय्या = जो मन्दिर मे मात्र भादवे के दस दिनो मे ही आते हैं । (३) लडैय्या = जो मात्र अनन्त चौदस के दिन या कभी-कभी मन्दिर मे लडाई करने आते हैं । (४) मरैय्या = जो चौधरी बनकर मात्र जब कोई लौकिक प्रसंग हो तो उसके यहाँ आते हैं । हे भाई । एकवार अपनी आत्मा का आश्रय लेकर सम्यग्दर्शन प्रगट करके देख, फिर अपूर्व आनन्द आवेगा । प्रश्न १६३ - या मोक्षार्थी को जरा भी राग नहीं करना चाहिए ? उत्तर- (१) पचास्तिकाय गा० १७२ मे लिखा है कि "मोक्षार्थी को सर्वत्र, किचित भी राग नही करना चाहिए।" (२) राग कैसा ही हो, वह अनर्थ सन्तति का क्लेशरूप विलास ही है । अस्थिरता सम्वन्धी राग भी मोक्ष का घातक, दुष्ट, का कारण है । (४) मिय्यादृष्टि राग को उपादेय मानता है इसलिए (३) ज्ञानी का अनिष्ट है, बध

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