Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 312
________________ प्रश्न १९६-मिथ्यादृष्टि के अबुद्धि पूर्वक राग को बुद्धि पूर्वक सम्यग्दृष्टि के बुद्धि पूर्वक राग को अबुद्धिपूर्वक क्यो कहते हैं ? उत्तर-श्रद्धा की अपेक्षा से सम्यग्दृष्टि की राग सहित अवस्था भी अवृद्धिपूर्वक मे गिनी जाती है, क्योकि सम्यग्दृष्टि को राग का स्वामीपना नही है । और मिथ्यादृष्टि का राग चाहे वह अवुद्धिपूर्वक हो वह सब बुद्धिपूर्वक ही गिना जाता है क्योकि उसके राग जा स्वामीपना है। प्रश्न १६७-अनुमान किसे कहते हैं ? उत्तर-साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते है । जैसे(१) बम्बई के समुद्र का एक किनारा देखने से, दूसरे किनारे का निर्णय होना । (२) समवशरण से तीर्थकर भगवान का निर्णय करना। (३) प्रशम, सवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य सहित सच्चे देव, गुरु, शास्त्र को यथार्थ श्रद्धा देखकर सम्यग्दृष्टि का निर्णय करना । (४) सम्यग्दर्शन ज्ञान पूर्वक १२ अणुव्रतादि देखकर श्रावकपने का निर्णय करना । (५) शुद्धोपयोग पूर्वक २८ मूलगुण देखकर भावलिंगी मुनि का निर्णय करना (६) स्पर्श देखने से पुद्गल का निर्णय करना। (७) गतिहेतुत्व से धर्मद्रव्य का निर्णय करना। यह सच्चा अनुमान ज्ञान है। प्रश्न १९८-निक्षेप किसे कहते हैं और निक्षेप से क्या तात्पर्य उत्तर-प्रमाण और नय के अनुसार प्रचलित लोक व्यवहार को निक्षेप कहते हैं । (१) नाम निक्षेप य का नाम । (१) स्थापना निक्षप-ज्ञय का आकार। (३) द्रव्य निक्षेप ज्ञेय की लायकात। (४) भाव निक्षेप =ज्ञय प्रगटता। प्रश्न १६६-रत्नत्रय को प्रगट करने की क्या विधि है ? उत्तर-आत्मा को प्रथम द्रव्याथिक और पर्यायाथिक नय द्वारा यथार्थतया जानकर, पर्याय पर से लक्ष्म हटाकर, अपने त्रिकाली


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