Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal
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( २०३ )
छोड़कर सम्यग्दृष्टि होना योग्य है । क्योकि ससार का मूल मिथ्यात्व है और धर्म का मूल सम्यक्त्व है । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २६६ ]
(५) जैसे रोज नामचे मे अनेक रकमे जहाँ-तहाँ लिखी है, उनकी खाते मे ठीक खतौनी करे तो लेने-देने का निश्चय हो, उसी प्रकार शास्त्रो मे तो अनेक प्रकार का उपदेश जहाँ-तहाँ दिया है, उसे सम्यग्ज्ञान मे यथार्थ प्रयोजन सहित पहिचाने, तो हित-अहित का निश्चय हो । इसलिए स्यात् पद की सापेक्षता सहित सम्यग्ज्ञान द्वारा जो जीव जिन वचनो मे रमते है, वे जीव ही शीघ्र शुद्धात्मस्वरूप को प्राप्त होते है । मोक्षमार्ग मे पहला उपाय आगमज्ञान कहा है, आगम ज्ञान बिना धर्म का साधन नही हो सकता, इसलिए तुम्हे भी यथार्थ बुद्धि द्वारा आगम का अभ्यास करना, तुम्हारा कल्याण होगा । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३०४]
प्रश्न ४१ - जो व्यवहार कथन को ही सच्चा मानता है उसे शास्त्रो में किस-किस नाम से सम्बोधन किया है ?
उत्तर - ( १ ) समयसार नाटक मे 'मूर्ख' कहा है । (२) आचार्य कल्प टोडरमल जी ने 'अनीति' आदि कहा है । ( ३ ) आत्मावलोकन हरामजादीपना कहा है । ( ४ ) समयसार कलश ५५ मे 'अज्ञान मोह अन्धकार है, उसका सुलटना दुर्निवार है', 'मिथ्यादृष्टि' आदि कहा है । ( ५ ) प्रवचनसार मे पद-पद पर धोखा खाता है - ऐसा कहा है । (६) पुरुत्रार्थसिद्धयुपाय मे 'तस्य देशना नास्ति' कहा है । (७) मोक्षमार्ग प्रकाशक मे उसके धर्म के सब अग मिथ्यात्व भाव को प्राप्त होते हैं । (८) समयसार गा० ११ के भावार्थ मे 'उसका फल ससार है ।'
आदि चागे अनुयोगो मे व्यवहार के कथन को सच्चा मानने वालो को चारो गतियो मे घूमकर निगोद मे जाने वाला कहा है । कि व्यवहार निश्वय का प्रतिपादक है । इसके बदले उसको सच्चा मान लेता है, वह मिथ्यात्व है ।

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