Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 284
________________ ( २७६ ) वो । यदि शरीर को ठीक ना रक्खोगे, तो धर्म नही होगा इत्यादि मान्यता वाला स्वयं चार्वाक है । (४) दिगम्बर नाम वराके शुभभाव करो तो तुम्हे धर्म का लाभ होगा इत्यादि मान्यता वाला स्वय वेताम्बर है | प्रश्न १२२ - इन्द्रियो को क्यो जीतना चाहिए ? उत्तर- (१) ज्ञानी कहते हैं, कि शास्त्रो मे कथन आया है कि इन्द्रियो को जीतो । अज्ञानी कहता है इन्द्रियाँ तो ज्ञान मे निमित्त पडती है, उन्हे क्यो जीतना चाहिए ? (२) ज्ञानी कहते इन्द्रियाँ ज्ञान मे निमित्त है, तो भोग से भी निमित्त है इसलिए इन्द्रियो को जीतना चाहिए । अज्ञानी कहता है जितनी भोग मे निमित्त है उसे जीतो और जो ज्ञान मे निमित्त है उसे मत जीता। (३) ज्ञानी कहता है इन्द्रियाँ पुद्गलो के जानने मे निमित्त है । अतीन्द्रिय नायक स्वभावी आत्मा को जानने मे निमित्त नही है इसलिए इन्द्रियो को जीतना चाहिए । प्रश्न १२३ - नन्द, आनन्द, महानन्द, सहजानन्द और परमानन्द ने क्या तात्पर्य है तथा इनमे गुणस्थान लगाकर बताओ ? उत्तर- [ अ ] नन्द - अपना त्रिकाली भगवान है । उसकी मर्यादा मे जो रहता है उसे आनन्द की प्राप्ति होती है । अपने नन्द की विशेष एकाग्रता करने मे महानन्द की प्राप्ति होती है। नन्द मे और विशेष एकाग्रता करने से सहजानन्द की प्राप्ति होती है और फिर पूर्ण एकाग्रता करने मे परमानन्द की प्राप्ति होती है । (१) नन्द = त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव । (२) आनन्द = चौथा गुणस्थान । ( ३ ) महानन्द : सातवा गुणस्थान । (४) सहजानन्द = १२वाँ गुणस्थान । ( ५ ) परमानन्द= १३-१४व गुणस्थान और सिद्ध दगा । [आ] जो अपने नन्द का आश्रय ना ले, उल्टा पर नन्द का आश्रय, शरीर का आश्रय, विकार का आश्रय, शुद्ध पर्याय का आश्रय लेता है, वह चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद मे चला जाता है ।

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