Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 288
________________ ( २८० ) -जगत मे एक समय में पूरे होने वाले अद्भुत कार्य उत्तर - (१) सिद्ध भगवान एक समय मे मध्यलोक से लोक के अग्रभाग मे चले जाते है । (२) जाने मे एक समय मे धर्मास्तिकाय का निमित्त होता है । (३) केवली भगवान जबकि केवलि समघात करते है तब सम्पूर्ण कालाणु एक समय मे एक साथ निमित्त होते है । (४) एक परमाणु एक समय मे चौदह राजू गमन कर जाता है । (५) जीव की पर्याय मे रागादि विकार एक समय का है और भगवान आत्मा के लक्ष्य से नाश को प्राप्त हो जाता है । प्रश्न १३२ -- क्या आत्मा ज्ञान होने पर ही आगमज्ञान का उपचार आता है ? प्रश्न १३१ क्या-क्या है ? उत्तर - (१) जिसको आगम ज्ञान ना हो, उसे कभी भी आतम ज्ञान नही होगा । ( २ ) परन्तु जिसको आगमज्ञान हो, उसे आतम ज्ञान होवे ही होवे ऐसा नियम नही है । (३) लेकिन जिसको आतमज्ञान होता है उसे आगमन ज्ञान होता ही है, और आगम ज्ञान में अटक नही रहती है । ( ४ ) आतम ज्ञान होने पर ही आगम ज्ञान कहा जाता है, क्योकि उपादान के बिना निमित्त नही होता है । प्रश्न १३३ - शास्त्र ज्ञान कब कार्यकारी कहा जाता है और कब कार्यकारी नहीं कहा जाता है ? उत्तर- (१) भिन्न वस्तुभूत आत्मा का भान ना हो, तो शास्त्र ज्ञान कार्यकारी नही परन्तु अनर्थकारी बन जाता है । (२) भिन्न वस्तुभूत आत्मा का भान होने पर ही शास्त्र ज्ञान कार्यकारी कहा जाता है । प्रश्न १३४ – किसके आश्रय से शुद्ध पर्याय नियम से प्रगट हो ? उत्तर - अपने त्रिकालीकारण भगवान परमात्मा की ओर दृष्टि करे तो नियम से शुद्ध पर्याय प्रकट होती है और पर द्रव्यों के और विकार के आश्रय से शुद्ध पर्यायें कभी भी प्राप्त नही होती हैं । जैसे

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