Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 292
________________ उत्तर-(१) जास्त श्रवण मे नीद आया सुख है। ( २८४ ) कहते हैं मेरी कोठी मे असख्यात प्रदेश और उनमे अनन्तगुण भरे हुए हैं उसमे मग्न रहना यह कोठी मे जार चोथा सुख है। प्रश्न १४७-शास्त्र श्रवण मे नीद आवे तो क्या नुकसान होगा? उत्तर-(१) जैसे-एक सेठ स्नान करके सो गया और नल खुला रह गया, तमाम कमरे मे पानी-पानी भर गया, घर का सब कीमती सामान खराब हो गया, उसी प्रकार जो शास्त्र मे जहाँ जन्म मरण के अभाव की बात चलती हो वहाँ सोवे, तो कितना नुकसान होगा? जरा विचारो। (२) जैसे-नई दुल्हन घर मे आई। उसने दूध आग पर रक्खा और उसे नीद आ गई तमाम दूध निकल गया, उसी प्रकार जो जीव शास्त्र में सोता है अवसर चला जावेगा, चारो गतियो मे भटकेगा। (३) एक बाई मे धी कढाई मे डालकर उसमे पूरी डाली तो उसे नीद आ गई तो तमाम घी जल गया पूरी भी काली हो गयी, उसी प्रकार जो जीव जहाँ जन्म-मरण के अभाव करने की बात चलती है वहाँ सोता है या उस वात को सुनकर अपने अन्दर नही डालता, वह चारो गतियो मे घूमकर निगोद चला जाता है। इसलिए पात्र जीव को शास्त्र मे कभी नहीं सोना चहिए । बल्कि उस बात को सुनकर अपना कल्याण तुरन्त कर लेना चाहिए ऐसा अवसर आना कठिन प्रश्न १४८--निश्चय के विना व्यवहार पर आरोप क्यो नहीं आता? उत्तर-एक आदमी बहिया वादाम ४०) रुपया का एक सेर लाया और घर पर आकर उनको फोडा, तो उसमे आधा सेर गिरी निकली बाकी रहा छिलका वह भी आधा सेर रहा। क्या कोई उस छिलके के २०) देगा ? एक पैसा भी ना देगा, क्योकि बादाम की गिरी होने के कारण छिलके की कीमत कही जाती है, है नही । उसी प्रकार निश्चय हो, तो व्यवहार नाम पाता है। अकेला व्यवहार हो तो वह व्यवहार नाम भी नहीं पाता है। इसलिए निश्चय के बिना व्यवहार का आरोप भी नही किया जा सकता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323