Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 291
________________ ( २८३ ) उत्तर-जिसे मरण का भय लगता है, उसे आयु के बध का भय लगना चाहिए। आयु का बध शुभाशुभ भावो के कारण होता है इसलिए जिसे आयु का बध ना करना हो, उसे शुभाशुभ से रहित अपनी आत्मा का आश्रय लेना चाहिए। फिर शुभाशुभ भावो की उत्पत्ति नही होगी। जब शुभाशुभ भावो की उत्पत्ति नही होगी, तब आयु का वध नही होगा, फिर मरण का भय रहेगा ही नही। प्रश्न १४४-वस, खस, रस, कस, बस, से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-स्व मे वस, पर से खस, आयेगा आत्मा मे अतीन्द्रिय रस, वही है अध्यात्म का कस, इतना करो तो बस । प्रश्न १४५-ज्ञानी प्रतिकूलता के समय क्या विचारते हैं ? उत्तर-(१) कोई गाली दे (तो विचारो) उसने मुझे पीटा तो नही। (२) यदि पीटे तो (विचारो) उसने जान से तो नही मारा। (३) यदि जान से मारे (तो विचारो) उसने तडफा कर के तो नही मारा (४) यदि तडफा करके मारे (तो विचारो) उसने मेरी आत्मा का तो नाश नही किया और मैं तो आत्मा हूँ। उसका कोई नाश कर सकता ही नही, अत उनको दुख नही होता। प्रश्न १४६-अज्ञानी लोग कहते हैं 'पहिला सुख निरोगी काया; दूसरा सुख लडका चार; तीसरा सुख सुकुल की नारी; चौथा सुख कोठी मे जार ।' क्या यह ठीक है ? और ज्ञानी क्या कहते हैं ? उत्तर-(१) अज्ञानी लोग पहला सुख निरोगी काया कहते हैं। ज्ञानी कहते हैं अपने ज्ञायक स्वभाव का लक्ष्य करे तो मिथ्यात्वरूपी महारोग का अभाव होता है वह आत्मा की निरोग दशा है यह पहला सुख है । (२) अज्ञानी लोग दूसरा सुख चार लडका कहते हैं । ज्ञानी कहते हैं-अनन्तचतुष्टय की प्राप्ति, वह दूसरा सुख चार लडका है। (३) अज्ञानी लोग तीसरा सुख सुकुल की नारी कहते हैं । ज्ञानी कहते हैं कि शुद्ध परिणति वह सुकुल की नारी है । (४) अज्ञानी लोग चोथा सुख कोठी मे जार अर्थात कोठी मे नाज भरने को कहते है । ज्ञानी

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