Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 293
________________ ( २८५ ) प्रश्न १४६-सबर क्या है ? उत्तर-शुभाशुभ भावो का रुकना, शुद्धि का प्रगट होना, वह संवर है। प्रश्न १५०-सवर मे क्या-श्या होता है ? उत्तर-त्रिकाली स्वभाव, शुद्ध पर्याय का प्रगट होना, अशुद्धि का उत्पन्न नहीं होना और द्रव्यकर्म का नही आना, यह चार बाते होती हैं। प्रश्न १५१-इन चार वातो से क्या लाभ रहा? उत्तर-प्रत्येक कार्य मे एक ही समय मे चार बातें नियम से होती हैं चाहे वह परिणमन शुद्ध हो या अशुद्ध । प्रश्न १५२-प्रत्येक कार्य मे चार वाते एक ही समय में नियम से हैं, इसका खुलासा कीजिये ? उत्तर-जीव अनन्त, पुद्गल अनन्तानन्त, धर्म, अधर्म, आकाश एक-एक और लोक प्रमाण अमख्यात कालद्रव्य है। इन द्रव्यो मे प्रत्येक-प्रत्येक मे अनन्त-अनन्त गुण हैं एक-एक गुण के कार्य मे एका ही समय मे यह चारो बाते घटित होती हैं । जैले औपशमिक सम्यक्त्व का उत्पाद, मिथ्यात्व का व्यय, आत्मा का श्रद्धा गुण ध्रौव्य और दर्शन मोहनीय का उपशम । प्रश्न १५३-चार बातें कौन-कौनसी हैं ? उत्तर-उत्पाद व्यय, ध्रौव्य और निमित्त । प्रश्न १५४-संवर मे चार वातों के जानने से क्या लाभ है ? उत्तर-जब प्रत्येक कार्य मे चारो बाते एक साथ होती हैं तो फिर करना क्या ? एकमात्र अपने स्वभाव पर दृष्टि दें, तो एक ही समय मे अशुद्धि का अभाव, शुद्धि की उत्पत्ति, द्रव्यकर्म का न आना स्वयमेव हो जाता है। प्रश्न १५५-तत्व अभ्यास का क्या फल है ? उत्तर-प्रत्येक द्रव्य मे अनन्त-अनन्त गुण हैं। एक-एक गुण में

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