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लडा ऊँट ने बडी बहादुरी दिखाई । ऊँट की बहादुरी के कारण दूसरा राजा भाग गया। राजा ऊँट की बहादुरी पर बडा प्रसन्न हुआ । राजा ने उसको इनाम के बदले में एक ऐलान निकाल दिया कि "ॐट अपनी इच्छानुसार जिस किसी के भी खेत मे जाकर चर सकता है, उसे कोई मारे नही, यदि मारेगा तो दण्ड का भागी होगा ।" एक बार वह ऊँट एक हरे-भरे वडे खेत मे चला गया और चरने लगा। वहाँ के मालिक ने ढोल टांग रक्खा था ताकि उसके बजाने पर जानवर भाग जावें और खेत को खराब ना करे | मालिक ने कई जानवरो के साथ अँट को खेत मे चरते हुए देखकर, ढोल बजाना शुरू किया । आवाज सुनकर और जानवर तो डर कर सव भाग गये, ऊँट चरता ही रहा । मालिक जोर-जोर से ढोल बजाता हुआ ऊँट के नजदीक आया । तब ऊँट ने कहा कि मैंने बडी-बडी लडाइयाँ लडी हैं और बडी-बडी तोप बन्दूको की गर्जना सुनी हैं। मै तेरे ढोलरूप पीपनी की आवाज सुनकर नही भाग सकता, उसी प्रकार ( अ ) यहाँ पर मिथ्यात्वरूप ऊँट है, (आ) बन्दूक तोपो की गर्जनारूप भगवान की दिव्यध्वनि हैं, (इ) ढोलरूप पीपनी की आवाजरूप गुरु की अमृतमयी वाणी है । मिथ्यात्वरूप ऊँट कहता है, कि मैंने अनन्तबार समवशरण मे तोपो गोलो की आवाजरूप भगवान की दिव्यध्वनि सुनी हैं । अब यह तेरी ढोलरूप पीपनी की आवाज रूप गुरु की वाणी मेरे लिए कुछ भी नही है ।
( २ ) ऐसे ही व्यवहाराभासी के नशे मे निश्चय - व्यवहार के अर्थ को न जानने वाले अज्ञानी जन बकते है कि हमने भी शास्त्र पढे हैं, हम भी समयसार को पढते हैं, गोम्मटसार के अभ्यासी हैं, इनके सामने गुरु की वाणी कुछ नही है । (३) वास्तव मे जब तक जीव पर मिथ्यात्वरूप भूत चढा रहता है तब तक उसे भगवान की दिव्य देशानारूप गुरु की वाणी का वहुमान आता ही नही । पात्र जीव को जब तक वह पूर्ण नही हो जाता, तब तक अपने से बडो के प्रति आदर