Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 281
________________ ( २७३ ) जीव मूर्खता करता है, तब कर्म आकर वध जाता है । प्रश्न १९१४ - समयसार गा० ५० से ५५ तक २६ बोलों को तीन बोलो में किस-किस प्रकार बाँटा है और इनसे क्या-क्या लाभ हैं ? उत्तर- (१) रंग (पुद्गल) (२) राग (विकार) (३) भेद ( गुणभेद) इन तीनो के आश्रय से अधर्म की प्राप्ति होती है, धर्म की प्राप्ति नही होती है । इनसे दृष्टि हटा कर स्वभाव पर दृष्टि दे, तो भला हो । अर्थात् ( १ ) निरंग, (२) निराग, (३) निभद जो अपना त्रिकाली स्वभाव है उसका आश्रय ले, तो ही धर्म की शुरूआत होकर, वृद्धि होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है । - प्रश्न ११५ - पर का करूँ, विस्मरूं और मरू पना मानता है । उसका फल क्या है ? उत्तर - (१) मैं पर का करूँ करूँ, (२) तो आत्मा को समयसमय विस्मरू और ( ३ ) समय - समय भयकर भाव- मरण से मरूँ । इसलिए जो जीव पर के करने धरने के भाव मे लगा रहता है उसका फल निगोद है और उसका मिथ्यात्व गुणस्थान है । प्रश्न ११६ - मै परका कुछ ना करूँ, ऐसे श्रद्धानादि का क्या फल है ? उत्तर- (१) मैं परका कुछ ना करू, किन्तु आत्मा को स्मरू ( चौथा गुणस्थान) । ( २ ) अपने स्वरूप मे ठहरू । ( ६-७वाँ गुणस्थान ) (३) रागादि को सर्वथा परिहरू (१२वाँ गुणस्थान ) । (४) मोक्ष लक्ष्मी को वरू (१३-१४ वाँ गुणस्थान और सिद्धदशा) । ७ प्रश्न ११७ - नौ के अंक को अफर क्यों कहते हैं ? दूनी उत्तर- नौ का पहाडा पढते जावे तो सबका जमा नौ ही होता है इसलिए नौ के अक को अफर कहा जाता है । जैसे - ( १ ) १८= तो १ ओर ८ जोड & हुए। (२) ६ तीया २७ = तो २ और ७ का जोड & हुआ, इसी प्रकार आगे जानना । नौ का अक बताता है

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