Book Title: Jain Satyaprakash 1939 02 SrNo 43
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 4
________________ [३८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ इकत्थाउ दसंता, अत्था परिगुंफिया विसेसाओ। तइयंगे ठाणंगे, वत्ता विविहाणुओगाणं ॥ १४ ॥ समिसावगहियभावा, चउभंगी सावगाण तह दुविहा । समिइव्ययपमुहाण, परूवर्ण पंचमडझयणे ॥ १५ ॥ आराहिऊण विहिणा, सिद्धत्थसुयस्स सासणं हरिसा। तित्थयरत्तं भवा, णव पाघिस्संति संतिगिह ॥ १६ ॥ सेणियसंखोदाई, सुपासपोट्टिलदढायुवरसयगा। तह रेवई य सुलसा - णवमज्झयणे मुणेयव्वा ॥ १७ ॥ तह पउमणामचरियं, सेणियणिवजीवणं महारसियं । आइसयतत्तणिहाणं, दीसइ अहुणा वि ठाणंगे ॥ १८ ॥ दवाइविमाणाणं, पुरिससमुदाण सेलसलिलाणं । भावा अज्झयणाई, दस तइयंगे सुयक्खंधो ॥ १९॥ समवायंगे भावा, जीवाजीवाण गइचउकस्स । समवायाणं सयगं-तित्थयराइस्सरूवं च ॥ २० ॥ ठाणंगाओ दुगुणं, कणंतभावणियं चउत्थंगं । सव्यंगसारकलियं, महप्पहावेण संजुक्तं ॥ २१ ॥ छत्तीससहस्साई, पसिणाई पंचमंगठिइयाई । सिरिगोयमाइपहि, संघसुरेहिं च पुट्ठाई ॥ २२ ।। तह बरबोहदयाई, भवरइवैरग्गभावजणयाई । पण्हाई पुट्ठाई, धम्मिट्ठाए जयंतीए ।। २३ ॥ केवलिसासणणाहो, पण्डत्तरदायगो महावीरो ।। सव्वाणुओगमेयं, चरणकरणभावसंकलियं ॥ २४ ॥ छद्दव्वभावपुण्ण, अन्नं णामं विवाहपण्णती। जस्स त्थि भगवईए, परिविइयं पंचमंगमिणं ॥ २५ ॥ एगाहियचालीस - ८पमाणसयगाइजत्थसुहयाई । उद्देसगप्पमाणं, पणसयरिण्णूणसहसदुगं ॥ २६ ॥ विमलोवक्कमभावा, णिक्खेवणयाणुगमसरूवं च । दवाइभंगतत्तं, पमाणसिद्धी भगवईप ॥ २७ ॥ अइमुत्ताइयसमणा, सड़ा सिरितुंगियाउरीवासा । सिरिसंघस्त हियटुं, परिकहिया सिरिभगवईए ॥ २८ ॥ संगामेणं भावा, सोवणियसेहरेण णिकाणं । छत्तीससहस्सेहिं, विहिया पूया भगवईए ॥ २९ ॥ एगूणधीसपमाणय - ज्झयणाइ दुवे तहा सुयक्खंधा । णायाधम्मकहंगे, दुगुणपयाई भगवईए ॥ ३०॥ पांडवसेलगवत्ता, दुवयसुयापूयणस्सरूवं च । सेणियसुयमेहमुणी, पहुणा विहिओ थिरो चरणे ॥ ३१॥ [अपूर्ण] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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