Book Title: Jain Satyaprakash 1937 11 SrNo 28
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म ४] દિગમ્બર શાસ્ત્ર કેસે બને? [११८] (२) आ० वीरसेन, आ० पद्मनंदी, आ० जिनसेन, आ० विनयसेन ( बडे गुरुभ्राता ) और आ० गुणभद्र । -दर्शनसार, गाथा-३१, ३२ यह पट्टधर परंपरा है । इसमें आ० वीरसेन, आ० जिनसेन * तथा आ० गुणभद्रके बीचमें और एक एक पट्टधर हुए हैं ।। आपका श० ६७५ (वि० सं० ८१० ) में जन्म, और श० ७६५ (वि० सं० ९०० ) में स्वर्ग हुआ है- ( आदिपुराणकी हीन्दी प्रस्तावना) आपने आ० वीरसेनके शिष्य आ० विनयसेन (बडे ) के कहनेसे ३६४ मन्दाक्रान्तावृत्तमें “ पार्वाभ्युदय " काव्य बनाया ( पा० श्लो० ७१ ) तथा आदिनाथपुराणका निर्माण किया। श्रीमान प्रेमीजी लिखते हैं कि-जयधवला और वर्धमानपुराण भी आपकी कृति है। आ०गुणभद्र आपके शिष्य हैं। आ०गुणभद्र, आ०जिनसेन और दशरथ गुरुके शिष्य हैं (उत्तरपुराण प्रशस्ति श्लोक-१३) तथा उनके शिष्य लोकसेन हैं कि जिन्होंने उत्तरपुराण की रचनामें स्वगुरुको सहारा दिया (उत्तरपुराण, प्रशस्ति श्लोक-२५). आ०गुणभद्रने आदिपुराण शेषभाग श्लो०-१६२०, उत्तरपुराण श्लो० ८०००, आत्मानुशासनम् श्लो० २७२४ की रचना कि। आत्मानुशासनमें इस श्लोकके बाद २७२ संख्या तकके श्लोक हैं । अंतमें ग्रन्थकारका नाम नहीं है। अंतके दो श्लोक तो ग्रन्थकर्ताकी तारीफसे हैं। दिगम्बर साहित्यमें व्रजकथाग्रंथ “महापुराण" है, जो इन दोनों आचार्यकी रचना है। १. आ०जिनसेनने आदिपुराणके पर्व ४३ श्लोक ३ पर्यन्त १०३८० श्लोक बनाये, बादमें आपकी मृत्यु हो गई। *आ० जिनसेन पांच हुए है १. आदिपुराणके कर्ता, २. हरिवंशपुराणके कर्ता, ३. मल्लिषेणाचार्यकी महापुराणप्रशस्तिमें उल्लिखित, ४. हरिवंशपुराणकी प्रशस्तिमें सूचित और ५. सेनगणकी पट्टावलीमें भ० सोमसेनके पट्टधर । -ग्रन्थपरीक्षा, भा॰ २, पृ० ४७। xजिनसेनाचार्यपाद-स्मरणाधीनचेतनाम् ॥ गुणभद्रभदन्तानां, कृतिरात्मानुशासनम् ॥ -आत्मानुशासनम् , श्लो० २३९ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44