Book Title: Jain Satyaprakash 1937 11 SrNo 28
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लेखक: दिगंबर शास्त्र कैसे बने ? - मुनिराज श्री दर्शनविजयजी ( गतांक से क्रमशः ) प्रकरण १५-आ० जिनसेन आ० गुणभद्र दिगम्बर साहित्य में द्रव्यानुयोगका ग्रंथ बन चुका था, अब प्रथमानुयोग ( कथानुयोग ) की कमीना थी । आ० जिनसेन और आ० गुणभद्रने उस कामको अपने शिर पर उठाया और दिगम्बर समाजको अच्छा साहित्य समर्पित किया । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ० जिनसेन धवलग्रन्थ के निर्माता आ० वीरसेन के शिष्य हैं। आपने आ० जयसेनके पास विद्याध्ययन किया है । जैसा कि सिद्धान्तोपनिबद्धानां विधातुर्मद्गुरोश्वरं । मन्मनः सरसि स्थेयान्मृदुपादकुशेशयम् ॥ - आदिपुराण प्रस्तावना, श्लो० ५७ जन्मभूमिस्तपोलक्ष्म्याः श्रुतप्रशमयोनिधिः । जयसेन गुरुः पातु, बुधवृन्दाग्रणी स नः ॥ - आदिपुराण उत्थानिका, श्लो० ५८ या ५९ आ० वीरसेनके आ० जिनसेन हुए । - उत्तरपुरण | श्रीमान् प्रेमीजीका मत है कि आदिपुराणके निर्माता आ० जिनसेनके विद्यागुरु आ० वीरसेन हैं और दीक्षागुरु आ० जयसेन हैं । - विद्वदूरत्नमाला, पृ० ३९ आपकी परंपरा इस प्रकार है - ( १ ) कोण्डकुन्द, उमास्वाति, गृद्धपीच्छ, समन्तभद्र, शिवकोटि, देवनन्दी, जिनेन्द्रबुद्धि, पूज्यपाद, भट्टाकलंक, जिनस्ररि, गुणभद्र, पुष्पदंत और भूतबलि तथा अर्हदुवलि | - श्र० बे० शि० नं० १०५ श्लोक १३ से २७, शक मं० १३२० । यह परंपरा कुछ क्रमवर्ति आचार्योंके नामरूप है । क्योंकि आ० उमास्वाति, आ० समन्तभद्र श्वेताम्बर आचार्य हैं, यह बात उनके प्रकरणो में साफ सप्रमाण लिख दी है । आ० पूज्यपाद व भट्टाकलंक भी न गुरु-शिष्य हैं, न निकटवर्ति हैं और आ० गुणभद्रके बाद आ० भूतबलि होते तो उनके दादागुरु आ० वीरसेन धवलाकी रचना कैसे करते ? इत्यादि कारणोंसे यह लेख झूठा माना जाता है । दिगम्बर समाजकी प्राचीनताको सिद्ध करनेवाले लेख करीब करीब ऐसी ही कक्षाके होते हैं। हां, श्रवणबेलगुलके शिला लेखमें एक यही लेख है कि जसमें वीरसेनका नहीं किन्तु सीर्फ आ० जिनसेन और आ० गुणभद्रके नाम उत्कीर्ण हैं । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 44