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ઐતિહાસિક સાર
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नहीं हुई। किसी सज्जनको कहीं प्राप्त हो तो हमें अवश्य सूचित करें । हमारे संग्रहके अन्य प्रबन्ध में कुछ विशेष बातें ये हैं :
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१ श्रीजिनराजस्ररिजीके ६ भाई और थे: - रामू, गेहू, * भैरव, केशव,
कपूर, सातउ.
२ थाहरू शाहने लौद्रवपुर प्रतिष्ठा समय १८०००) रु० व्यय किए ।
३ शत्रुञ्जय पर ७०१ प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा की ।
४ नवानगर के चातुर्मास में डोसी माधवादि श्रावकोंने ३६००० जामसाही व्यय किए ।
५ आपने ६ मुनियोंको उपाध्याय, ४१ को वाचक और १ साध्वीको पहुत्तणी पद दीया ।
६ आपके शिष्य प्रशिष्यकी संख्या ४१ थी ।
७ नैषध काव्य पर ३६००० श्लोक प्रमाण बृहद्वृत्ति बनाई । एवं बहुत से साधुको अंग, उपांग, कर्मग्रन्थादि पढाए ।
८ सं. १६८६ मिगसर बदि ४ रविवार आगरेमें सम्राट् शाहजहांसे मिले, इसका विशेष वृत्तान्त दानसागर भण्डार (वं. नं. ४७ पत्र ८ ) की पट्टावलीमें इस प्रकार लिखा है:
" वलि सं. १६८६ श्री आगरा मांहि पहिली आसबखान नइ मिल्या तिहां आठ ब्रा (ह्म) णां सुं वाद करी, आठेइ ब्राह्मण हार्या आसबखान निपट खुशी थया तियार पछी काउ मंइ पातिसाहसुं तुम्हको मिलाउंगा तिवारइ मिगसर बदि ४ आदित्यवार पातसाह साहजहांने मिल्या त्रिहनारी बिउमारउ साम्हा भूकी तेडाया घणउ आदर दियउ अने कितरेक देशे यति रह न सकता ते पण तिवार पछी रहता थया । "
यह बात समकालीन जिनराजसूरि सवैए, जो ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह पृ. १०३ में छपे है, उनसे एवं श्री जिनराजस्ररि अष्टक आदिसे भी भलीभाँति सिद्ध है ।
९ सं. १७०० आषाढ शुक्ला ९ पाटण में स्वर्ग सिधारे ।
अन्य कई पाठान्तर राससार के फुटनोटमें दे दिए गए हैं। आपके रचित शालिभद्र चौपाइ, स्थानाङ्गवृत्ति, नैषधवृत्तिके अतिरिक्त १ गजसु - कुमाळ चौपाई, २ चौवीसी, ३ वीसी, ४ कर्मबतीसी, ५ शीलवतीसी, ६ प्रश्नोत्तर रत्नमालाबाला०, ७ गुणस्थानक स्त और अनेकों गीत, पद, स्तवनादि उपलब्ध हैं ।
* गेहूकी अभ्यर्थनासे सं. १६७८ आश्विन बदि ६ को शालिभद्र रास
बनाया ।
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