Book Title: Jain Satyaprakash 1937 11 SrNo 28
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir પરમા ત મહાકવિ શ્રી ધનપાલનુ આદર્શ જીવન લેખક:-મુનિરાજ શ્રી સુશીલવિજયજી (गतां थी यालु) નગરજનાએ કરેલ ભવ્ય સામઈયું આજને વિમ મલખ્ય હતા. વસન્ત ઋતુનો પ્રારંભકાળ ચાલતો હોવાથી ધારનગ રીની ગોમા અને જન સમુદાયના હર્ષના કલ્લોલોની પરિસીમા ન હતી. સ્થળે સ્થળે પુ ષા, સ્ત્રી અને છળકે અનેક તરેહના વસ્ત્રાલ કારથી આભૂષણે થી સજ્જ થયેલાં દેખાતાં હતાં. વાજિંત્રાના દિવ્ય ધ્વનિ ભૂમડલને ગજાવી રહ્યાં હતાં. જૈતાની વિજય પતાકા ડામ્બામ ફરકી હી હતી. લોકોના વદનકમલમાંથીવીનીઓના ઉદ્ગાશ નીકળી રહ્યા હતા. એ સુરીશ્વરની ધર્મની નાત સાંભળવા કાજે વાગ્યમય વાણીને હૃદ્ય મલમાં ઉતાઃવા માટે, આધિવ્યાધિ ઉપાધિરૂપી ઝેરી સર્પોનુ વિષે ઉતરવાને કાજે, અન્ય કણમાં (पान १ यालु) करते। इस प्रकार जिनसिंहरि विजेता हुए और विप्र तिस्कृत हुए । सम्राट् अकबर, राव, राणा, मंत्रीश्वर, मुंहत आदि जिनसिंहसूरिजी को बहु मान देते थे । दादा जिनदत्तसूरिजी और जिनकुशलसूरिजी जिन्हें सानिध्य करते हैं ऐसे श्रीजिनसिंह सूरिजी अपने वचनसुधारसद्वारा भव्योंको प्रतिबोध देते हुए चिरकाल तक जयवन्त रहें । यह रास चारित्रउदय वाचक के शिष्य वीरकलश के शिष्य सूरचंद्रगणि * ने रचकर पूर्ण किया । (अपूर्ण) * इनकी अन्य कृतियों की सूचि “ 'युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि " पृ० २०४ में देखें । यद्यपि इस रास में रचना समय नहीं दिया है फिर भी इसका रचनाकाल सं. १६५० और १६५६ के मध्य में ही ज्ञात होता है, क्योंकी अकबर मिलन के पश्चात की कोई भी घटना इस रास में नहीं है और श्रीजिनसिंहरि अकबर के दरबार में सं. १६४८, ४९, ५०, ५१ तक ही रहे ज्ञात होते हैं । इस रास में मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के चिरायु होने की आशीर्वाद दी है, और सं. १६५६ में सूरिश्वरका स्वर्गवास अहमदाबाद में हो चुका था, अतः रास रचना इससे पूर्व होना स्वतः सिद्ध है । इस रास की प्रति ( पत्र ४, गा० ६५) हमारे संग्रह में है । पुष्पिका लेख यह है : -- संवत् १६६८ वर्षे पुग्गलकोटे युगप्रधान गुरु श्री जिनचंद्रसूरि-शिष्यवाचनाचार्यकल्याणकमळगणि शिष्य पं. महिमसिन्धुरगणि तत् शि० विनयवर्द्धनमुनिना लेखि श्राविका चांपा पठनार्थम् ॥ वाच्यमानं चिरं नद्यात् ॥ For Private And Personal Use Only

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