Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 38
________________ ४] 79 35 23 33 55 33 11 13 17 33 55 33 }} 31 जैन साहित्य संशोधक [ खण्ड २ किसी आचार्य की कल्याणकारी देशनों को सुनकर राजश्री के पुवने' - चर्य व्रत धारण किया । १७-१८ ऋषभदास के पुत्र फुंरपाल स्वर्णपाल ( सोनपाल ) । तिन के गुणों का वर्णन । दान देने में उन की कर्ण से उपमा । १९-२० ये जहांगीर बादशहा के अमात्य (संती ) थे; बडे धनवान थे; सदा शुभकाम झरते और पुण्य क्षेत्रों में धन लगाते थे । २१ जहांगीर की आज्ञा से दोनों भाई धर्म का काम करते थे । २२--२३ उन्हों ने तीन भवन वाली एक पौषधशाला धनवाई | संघाधिपति बनकर समेत शिखर, शत्रुंजय, आचू, गिरनार तथा अन्य तीर्थों की यात्रा की । २४ १२५ घोडे, २५ हाथी यात्रा के लिये जुदा कर छोडे थे । २५ उन्हों ने दो चैत्य बनवाए जो बहुत ही ऊंचे, चित्रों और झंडों से सजे ये थे । २६ मंचल गच्छ की उत्पत्ति | भगवान महावीर से ४८ वे पट्ट पर श्री आर्य रक्षित सूरि हुए । उन्हों ने श्री सीमंधर स्वामी की आज्ञा पूर्वक चक्रेश्वरी देवी से वर प्राप्त करके विधिपक्ष अर्थात् अंचलगच्छ चलाये । २७-३० पट्टावलि । ३१-३२ कुंरपाल सोनपालने श्री कल्याणसागरके उपदेश से श्रेयांस नाथजी का मंदिर बनवाया । ३३- ३४ और उसी समय ४५० अन्य प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई । इस से उत्त की बडी ती हुई । ३५ संघराजै... बेटे सोनपाल... चतुर्भुज... दो बेटियां । प्रेमन के तीन पुत्र... ३६ पेतसी और नेतखी जो शीलपालने से मानो सुदर्शन ही विद्यमान था । बुद्धिमान, तेजस्वी और यशस्त्री संघराज के चार बेटे थे । ३७ कुंरपाल की भार्या......उस की पुत्री का नाम नादो था । जेठमल गुण का धाम **I** ३८ रेपली के दोनो पुत्र ( झुंरपाल सोनपाल ) अपनी पुत्रवधुओं संघश्री, सुलसी, दुर्गश्री आदि के गुणों से शोभा पाते रहें । आशीर्वाद ( जिस के बहुत से अक्षर टूट गए हैं ) || " १ कल्याणदेशना से शायद श्रीकल्याणसागर जी के उपदेश का आशय हो । २ शायद उपभदास की माता का नाम राजश्री था । ३ महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान तकिर । ४ इन प्रतिमाओं का पता लगाना चाहिये । ! यहां से काम ठीक नहीं बैठा

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