Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 89
________________ अंक १] ११३१.. प्रो. ल्युमन अने अवश्यकसूत्र [८५ विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्याय तान्येवानुविनश्यति, न प्रेत्य सम्झास्ति। - बृहदारण्यकोपनिषद् २, ४, १२.-आगळ गाया ३९अने १३७, नो टीकार्मा, ।मद्रित पृष्ठ ६८.त्या ७२० मां) पण आ अवतरण आवे है.तया भाष्यना मूळा, गाया ४०२,४१४, ४२१ (मु० पृ० ६८१) मा मा अवतरण अनुवादित है, (सुगतस्त्वाह) न रूपं मिक्षवः पुद्गल इति [ आदि ] अन्ये त्वाहुः I वासांसि पोर्णानि यया विहाय नवानि गृहाते नरोऽपराणि । तया शरीराप्यपरापराणि पहाति गृहाति च पायं जीवः ॥ [ (तथा च वेदः)] न ह वै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहतिरस्ति, अशरीरं वाव सन्त मियाप्रिये न स्पृशतः। -छान्दोग्योपनिषद् ८,१२,१. -आगळ (गाया) ४३.१०३. २५६. ३१३ नी टीकामा द्रित पृष्ठ ६८२. ७०६.७५९. ७७७.मां) पण आ अवतरण उत है. त्या भाष्य-मूळ गाया-३१३१%D४६७१ (मु..७७७. ८३१) मी मा मबतरण अनुवादित छे. ([तथा] अग्निहोत्रं सुहुयात् स्वर्गकामः) मध्युपनिषद् ६,३६.-आगळ गाया ४३.९५, २५२. ३३४. (नु. पृ. ६८२. ७०२.७५८. ७८४) नी टीचमा पुनः सप्टत. मूळ गाया ९२% १३६२= ३९९२ -४२२२, (मु. पृ. ७००. ७२०. ८०७. ८१४ ) मा अनुवादित. गाया ३३४. (नु.ए.७८४ ) मां सूचित । सरखावो-हरिभद्रनी आवश्यत्तिमा चैत्यवन्दनवृत्ति आव०५.१९; त्या शान्त्रवार्तासमुच्चय ६०५, वळी ए हा अन्यना १५७ मा लोकमा माना जेवु न एक अवतरण छे जे तैत्तिरीयवहिताना २ नानी आदिमा छे. ([कपिलागमे तु प्रतिपाद्यते] अस्ति पुरुषः) अकी निर्गुणो मौका (चिपः) - ७. आना ठेकाणे ह० मा 'तया' पाठ छे. ८. भगवद्गीता २, २२ (महाभारत ६, ९००) मां उत्तरार्द्ध आ प्रमाणे छे: तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ - चूर्णिमां एक बीतुं वधारे नीचे प्रमाणेनुं अवतरण छे: काया पन्नो मुत्तो निच्चो कत्ता तहेव भोचा य । तणुमेचो गुणवन्तो उड्ढाई वण्णिो जीवो॥ सरखावो-दशवकालिक नियुक्ति गाया २२७ अने ते पछीनी. (नु. पृ० १२१) ९ सुत्रकृतांग १,१,१-१४ नी टीकामा शीलांकाचार्य 'तया चौक' करीने आ अवतरण नीचे प्रमाणे आपे है:

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