Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ · जैन साहित्य संशोधक. स्वाध्याय-समालोचन आमरे के श्रीआत्मानन्द पुस्तक प्रचारक मंडलने एक महत्त्वके प्रन्थका प्रकाशन किया है। इसका नाम है पातञ्जल योगदर्शन | यों तो पातञ्जल योगदर्शन के अनेक संस्करण, अनेक स्थानोंसे, अनेक रीतिसे और अनेक भापाओंमें प्रकट हो चुके हैं लेकिन हम जो इस संस्करणको महत्त्वका कहते हैं उसका खास कारण यह है कि इस संस्करणमें जो व्याख्या प्रकट हुई है वह संस्कृतसाहित्यके ज्ञाताओके लिये एक विशेष वस्तु है । पातञ्जल योगदर्शन एक वैदिक संप्रदाय है । ब्राह्मण संप्रदायके जो छ दर्शन गिने जाते हैं उनमें इसका विशिष्ट स्थान है। सांख्य और योग ये दोनों दर्शन युगलरूपसे व्यवहृत होते हैं और सब दर्शनोंमें प्राचीन हैं । असलमें सांख्य दर्शनका ही एक विशेपरूप योग दर्शन है । सांख्य दर्शनमें ईश्वरस्वरूप किसी व्यक्ति या तत्त्वका अस्तित्व नहीं माना जाता और योगदर्शनमें उसको आश्रय दिया गया है-इतना ही इनमें मुख्य भेद है । जैन और बौद्ध: दर्शनमें ऐसे अनेक तत्त्व और सिद्धान्त हैं जो सांख्य और योग दर्शनके तत्त्व और सिद्धान्तोंके. साथ समता रखते हैं। इस लिये बहुत प्राचीन कालसे जैन और बौद्ध विद्वानोंको सांख्य और योग दर्शनके अध्ययन और मननका परिचय रहा है । इसी परिचयका उदाहरण स्वरूप यह प्रस्तुत ग्रन्थ है । इस ग्रन्थसें पातञ्जल योगदर्शनके सूत्रों पर जैन धर्मके एक अति प्रसिद्ध और महाविद्वान् पुरुषने व्याख्या लिखी है वह प्रकट की गई है। व्याख्याकार है न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीयशोविजय गणी । इस व्याख्या में महोपाध्याय ने पातञ्जल योगसूत्रोंका जैन प्रक्रियाके अनुसार अर्थ किया है | व्यासकृत सूळ भाप्यके विचारोंके साथ जहां जहां अपना मतभेद मालूम दिया वहां । उपाध्यायजीने बडी गंभीर भाषामें अपने विचारका समर्थन और भाध्यकारके विचारोंका निरसन किया है और यही इस व्याख्याकी खास विशिष्टता है। ___ इस ग्रन्थका संपादन विद्वद्वर्य पं सुखलालंजीने किया है । जहां तक हम जानते हैं, जैन साहित्यमें अभी तक कोई तात्त्विक ग्रंथ ऐसी उत्तम रीतिसे संपादित हो कर प्रकट नहीं हुआ। ग्रन्थके महत्त्व और रहस्यको समझानेके लिये पंडितजीने परिचय, प्रस्तावना और सार इस प्रकारके तीन निबन्ध हिन्दी भाषामें लिखकर इसके साथ लगाये हैं जिनके पढनेसे. एक अन्यके पूर्ण अभ्यासके लिये जितने अंतरंग और बाह्य प्रश्नोत्तरोंकी आवश्यकता होती है, उन सबका ज्ञान पूरी: तरहसे हो जाता है । परिचय नामक निबन्धमें, पंडितजीने योगसूत्र, योगवृत्ति, योगविंशिका आदिका परिचय कराया है और प्रस्तावनामें जैन और योगदशनकी तुलना. तथा तद्विषयक साहित्यका विवेचन किया है । यह प्रस्तावना केसी महत्त्वकी और कितने पांडित्यसे भरी हुई है इसका खयाल तो पाठकोंको इसके पढने ही से आ सकता है और इसी लिये हमने इस सारी प्रस्तावनाको इसी अंककी आदिमें उध्दृत की है। _इस पुस्तकमें योगदर्शनके सिवा एक योगविंशिका नामका ग्रन्थ भी सम्मिलित है जो मूल. हरिभद्रसूरिका बनाया हुआ है और उस पर टीका सइन्हीं यशोविजयजीने की है । जैन दर्शनमें 'योग' को क्या स्थान है और उसकी क्या प्रक्रिया है यह जानने के लिये यह योगविंशिकाः बहुत ही उपयोगी है। . - पुस्तके अंतमें योगसूत्रवृत्ति और योग विशिकावृत्ति का हिन्दी सार दिया है जिससे संस्कृतः . . न जानने वाले भी इन ग्रन्थगत पदार्थोंको सरलतासे समझ सकते हैं । इस पुस्तकका ऐसा उपयुक्त संस्करण निकालनेके लिये संपादक महाशय पं. सुखलालजी तथा मंडलके उत्साही संचालक श्रीयुतः बाबू दयालचंदजी-दोनों सजन विद्वानोंक विशेष धन्यवादके पात्र हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127