Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 87
________________ त्रीजो अंक १] प्रो. ल्युमन अने आवश्यकसूत्र 886 ३ . ६ ट्ठी गाथामा क्रमथी ए अग्यारेना मनमा जे जे बाबतनो संशय हतो तेनी नोंध छे.अने ते आ प्रमाणे छ जीवे' कम्मे तज्जीव' भूय तारिसय५'बन्ध-मोखे य । . देवा नेरइया वा पुण्णे परलोग निव्वाणे' ॥ ६ (५९६) ' . ७. पहेला पांचे गणधरोने ५०००-५०० शिष्यो हता; ६-७ ने ३५०-३५० अने ठेला ४ ने ३००-३०० शिष्यो हता. __ महावीर दरेकने नाम गोत्र पूर्वक बोलावे छे अने पछी तेना मनना संशयन नाम लई, 'तूं वेदना पदोनो अर्थ जाणतो नथी, तेनो अर्थ आ प्रमाणे छ' एम एक ज प्रकारनो जवाब आपे छे. • गाथावार गणधरोनो उल्लेख आ प्रमाणे १७. - पहेलो गणधर, जीव विषयक ___ संशय. २५. बीजो कर्म विषयक तज्जीव तच्छरीर वि. , ३५. चोथो पञ्च भूत वि० ३९. पांचमो सदृशोत्पत्ति वि० ४३. . छो बन्ध मोक्ष वि० ४७. सातमी , देवमृष्टि वि० ५१. आठमो " नरकसृष्टि वि० नवमो पुण्य विषयक दशमो परलोक वि० ६३. अग्यारमो , निर्वाण वि० आ अग्यारे गणधरोना मनना संशयनो महावीरे जे खुलासो कयौँ हतो तेनो उल्लेख सूळ नियुक्तिमा करवामां आव्यो नथी. निन्हवोनी हकीकतनी पेठे ज ए हकीकत पण निर्णय वगर ज आपवामां आवेली छ. चूर्णिमां फक्त पहेला गणधरना संशयनो खुलासा करवानो थोडोक प्रयत्न करवामां आव्यो छे. पण जिनभद्र आ बाबतनो घणो उत्तम विस्तार करे छे. ए विषय माटे तेमणे ४०० उपरांत गाथाओ लखी छे अने तेना विवरणमां घणी विशेष वातो आपी छे. हरिभद्रसूरि आ विवरणमाथी घणांक अवतरणो पोतानी टीकामां ले छे अने एज अवतरणो विशेषावश्यक भाष्यमांना गणधरवादनी टीकाओना आधारभूत बने छे. वळी हरिभद्रनी टीका उपरथी किश्चिद्गणधरवाद नामनो पण एक ग्रन्थ लखायो छे, जेमां केटलोक वधारे विस्तार करवामां आवेलो होई वेदनां घणां खरां अवतरणो उपरांत छछी अने ते पछी आवती गाथामांनी हकीकतर्नु पण निरूपण करेलुं छे. आनी श्लोक संख्या लगभग २५० जेटली छे अने पूनाना पुस्तकभंडारमा नं० १६, २९१ वाळी प्रतना २० थी.२३ मा सुधीना पानाओमां ए लखेलो छे. दशवैकालिकनी लघुवृत्तिमां पण संक्षेपथी आ विषय चर्चेलो छे. ____ आ विषयने लगता जे केटलांक वैदिक अने दार्शनिक अवतरणो जिनभद्र आपे छे अने तेमनो जे अर्थ जैन मतानुसार करे छे ते जाणवां जेवां छे. आमांनां घणां खरां अवतरणो तो तेमणे फक्त ५९.

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