Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 39
________________ ............ १५ LAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAMANNAARANAMANNARAI MamanaravMARAwaruaamanasi-nakamam अक कुँरपाल सोनपाल प्रशस्ति [टिप्पणी-कुंवरपाल सेनपाळकी प्रशंसामें किसीएफ फपि हिन्दी भाषामें एक कविता लिखी है जो पाठपके किसीएफ भंडारमें हमारे देखनेमें आई घी और जिसकी नकल हमने अपनी नोटबुक फर की थी। उसका संबंध इस लेखके साथ होनेसे हम यहाँ उसे प्रकट क्रिगे देते हैं। --संपादक ।] कोरपाल सोनपाल लोढा गुणप्रशंसा कवित्त सगर भरथ जगि, जगडु जावड भये । पामराय सारंग, सुजश नाम परणी ।। १ सेजेजे संघ चलायो, सुधन सुखेत बायो । संघपतिपद पायो, कवि कोटि किति बरणी ।। २ लाहनि कडाहि ठाम, ठाम ग भांन कहि | आनंद मंगल घरि घरि गावे घरणी ॥३ वस्तपाल तेजपाल, हुये रेखचंद नंद । कोरपाल सोनपाल, कीनी भली करणी ।। ४ कहि लखमण लोढा, दूनीकुं दिखाइ देख | लछिको प्रमान जोपे, एसो लाह लीजिये ।। ५ आन संघपति कोउ, संघ जोपे कीयो चाहे । कोरपाल सोनपाल,-को सो संघ कीजिये ।। ६ सवल राय बिभार, निबल थापना चार | बाधा राइ बंदि छोर, अरि र साजको ।। ७ अडेराय अवठंभ, खितीपती रायखंभ | मंत्रीराय आरंभ, प्रगट सुम साजको ।। ८ कबि कहि रूप भूप, राइन मुकटमनि । त्यागी राई तिलक, बिरद गज वाजको ।। ९ हय गय हेमदान, मांन नंदकी समान | हिंदु सुरताण, सोनपाल रेखराजको ॥१० सैन पर आसनके, पैजपर पासनके | निजदल रंजन, भंजन पर दलको ॥ ११ मदमतवारे, विफरारे,अति भारे भारे । कारे कारे बादरसे, पासव सुजलके ।। १२ कवि कहि रूप, नृप भुपतिनिके सिंगार | अति वडवार ऐरापति समवलके ।। १३ रेखराजनंदकोर पाल सोनपालचंद । हेतवनि देत ऐसे हाथिनिक हलके ।। १४

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