Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 48
________________ ---Muutrwwww ४४] ঈদ ভাইৰ মাখি (जैनेन्द्र के कर्ता) और पाणिनिका उल्लेख और भी एक दो जगह हुआ है । गुरु, शुक्र, विशालाक्ष, परी.. क्षित, पराशर, भीम, भीम, भारद्वाज आदि नीतिशास्त्रप्रणेताओंका भी वे कई जगह स्मरण करते हैं। कौटिलीय अर्थशास्त्रसे तो वे अच्छी तरह परिचित हैं ही । हमारे एक पण्डित मित्रके कथनानुसार नीतिवाश्यामृतमें सौ सवा सौ के लगभग ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ वर्तमान कोशोंमे नहीं मिलता । अर्थशास्त्रका अध्येता ही उन्हें सम्म सकता है । अश्वविद्या, गजैविद्या, रत्नपरीक्षा, कामशास्त्र, वैर्धक आदि विद्याओंके आचार्योंका भी उन्होंने कई प्रसंगोंने जिकर किया है । प्रजापतिप्रोक्त चित्रकर्म, वराहमिहिरकृत प्रतिष्टाकाण्ड, आदित्यमत, निमित्ताध्याय, महाभारत, रत्नपरीक्षा, पतंजलिका योगशास्त्र और वररुचि, व्यास, हरवोध, कुमारिलकी उफियोंके उद्धरण दिये हैं । सैद्धान्तवैशेपिक, तार्किक वैशेषिक, पाशुपत, कुलाचार्य, सांख्य, दशवलशासन, जैमिनीय, वाईसत्य, वेदान्तवादि, काणाद, ताथागत, कापिल, ब्रह्माद्वैतवादि, अवधूत आदि दर्शनोंके सिद्धान्तोपर विचार किया है । इनके सिवाय मतग, भृगु, भर्ग, भरत, गौतम, गर्ग, पिंगल, पुलह, पुलोम, पुलस्ति, पग शर, मरीचि, विरोचन, ध्रुमध्वज, नीलपट, अहिल, आदि अनेक प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध आचार्योंका नामोल्लेख किया है। बहुतसे ऐतिहासिक दृष्टान्तोंका भी उल्लेख किया गया है । जैसे यवनदेश (यूनान? ) में मणिकुण्डला रानोने अपने पुत्रके राज्यके लिए विषदूपित शरावके कुरलेसे अजराजाको, सूरसेन (मथुरा) मे वसन्तमतिने विषमय आलसे रंगे हुए अधरोंसे सुरतविलास नामक राजाको, दशार्ण ( मिलसा) में वृकोदरीने विपलिप्त करधनीसे मदनाणव राजाको, मगध देशमें मदिराक्षीने तीखे दर्पणसे मन्मथविने दुको, पाख्य देशम चण्डरसा रानीने करीने छुड़ी हुई छुरीसे मुण्डीर नामक राजाको मार डाला । इत्यादि । पौराणिक आख्यान भी बहु-से आये हैं। जैसे प्रजापति ब्रह्माका चित्त अपनी लड़की पर चलायमान हो गया, वररुचि या कात्यायनने एक दासीपर रीझकर उसके कहनेसे मचका घड़ा उठाया, आदि। इन सब बातोंसे पाठक जान सकेंगे कि आचार्य सोमदेवका ज्ञान कितना विस्तृत और व्यापक था। उदार विचारशीलता। यशस्तिलकके प्रारंभके २० वे ले कने सोमदेवसूरि कहते हैं: लोको युक्तिः कलाश्छन्दोऽलंकाराः समयागमाः । सर्वसाधारणाः सद्धिस्तीर्थमार्ग इव स्मृताः ॥ अर्थात् सज्जनोंका कथन है कि व्याकरण, प्रमाणशास्त्र (न्याय ), कलायें, छन्दःशान, अलंफारशास्त्र और (आहेत, जैमिनि, कपिल, चार्वाक, कणाद, बौद्धादिके ) दर्शनशास्त्र तीर्थमार्गके समान सर्वसाधारण हैं । अर्थात् जिस तरह गंगादिके मार्ग पर ब्राह्मण भी चल सकते हैं और चाण्डाल भी, उसी तरह इनपर भी सबका अधिकार है। + १-" पूज्यपाद इव शब्दतियेषु...पणिपुत्र इव पदप्रयोगेषु " यश आ० २, पृ० २३६ । -२, ३, ४, ५, ६-" रोमपाद इव गजविद्यासु रैवत इव हयनयेषु शुकनाश इव रत्नपरीक्षासु, दत्तक इव कन्तुसिद्धान्तेषु "-भा० ४, पृ. २३६-२३७ । 'दत्तक' कामशास्त्र के प्राचीन आचार्य है । वात्स्यायनने इनका उहख किया है। 'चारायण' भी फामशाखके आचार्य हैं। इनका मत यशस्तिलकके तीसरे आश्वासके ५०९ पृष्ठमें चरकके साथ प्रकट किया गया है। ..., २, ३, ४, ५–उक्त पाचां अन्योंके उद्धरण यश के चौथे आश्वासके पृ० ११२-१३ और ११९ में उद्धृत हैं । महाभारतका नाम नहीं है, परन्तु-पुराणं मानवो धर्मः साड्गो वेदश्चिकित्सितम्' आदि श्लोक महाभारतसे ही उद्धृत किया गया है। ६-तदुक्तं रत्नपरीक्षायाम्-'न केवलं' आदि; आश्वास ५, पृ. २५६ । ७-यशस्तिलक आ० ६, पृ. २७६-७७८-९-आ० ४, पृ० ९९।१०,११-आ० ५, पृ०२५१-५४ । १२-इन सब दर्शनोंका विचार पाँचवें आश्वासके पृ. २६९ से २७७ तक किया गया है। १३-देखो आश्वास ५, पृ० २५२-५५ और २९९ । यशस्तिलक आ०४, पृ. १५३ । इन्हीं आख्यानोंका उल्लेख नीतिवाक्यामृत ( पृ. २३२) में भी किया गया है। आश्वास ३. पृ. ४३१ और ५५० में भी ऐसे ही कई ऐतिहासिक दृष्टान्त दिये गये हैं। . ४ यश. आ० ४.पृ. १३८-३९। +"लोको व्याकरणशान, युक्तिः प्रमाणशास्त्रम, .....समयागमा: जिनजैमिनिकपिलकणचरचार्वाकशाक्यानां सिद्वान्ताः । सर्वसाधारणा: मद्भिः कथिताः प्रतिपादिताः। क इव तीर्थ माग इय । यया तीर्थमार्गे ब्राझगाश्चलन्ति, चाण्डाला अपि गच्छन्ति, नास्ति तत्र दोषः।"-श्रुतसागरी टीका।

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