Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 59
________________ अंक १j कीरग्रामनो जनै शिलालेख कीर ग्रामनो जैन शिलालेख. [पंजाब प्रांतना कांगडा जिल्लामा कीराम करीने एक स्थान छे अने त्यां शिव-वैद्यनाथनुं प्राचीन अने प्रख्यात धाम छे. ए वैद्यनाथना मंदिरमां कोई जैन प्रतिमानुं पाषाण सिंहासन क्याएथी आवी गएलं छेजना उपर नीचे आपेलो लेख कोतरेलो छ. ए लेख एपिग्राफिआ इंडिकाना, १ ला भागना, ११८ पान उपर डॉ० जी. बुल्हरे संक्षिप्त विवेचन साथे प्रकट करलो छे. ए विवेचन अने लेख आ प्रमाणे छे.--संपादक ] नीचे आपेलो लेख कांगडानों कीरग्राममां आवेला शिव-वैद्यनाथना देवालयांची मळी आवेलो छ. ए लेख जैन नागरी अक्षरोमां बे लीटिओमां लखेलो छ. आ लीटिओ महावारनी प्रतिगानी बेठकनी त्रण वाजुए चार मोटा अने बे नाना भांगमां व्हेंचाएली छे. लेख लगभग सारी स्थितिमा छे. ए। दोल्हण अने आल्हण नामना बे व्यापारिओए आ प्रतिमा बनाव्या विपे तथा देवभद्रसूरिए एनी प्रतिष्ठा कयों विषे उल्लेख करेलो छे. वळी कारणानमा आ बंने भाईओए सहावीरनुं एक मंदिर बंधाव्यानी नोंघ पण एमां करेली छे. वर्तमानमां, कारग्राममां कोई पण जना जैन मंदिरनी हयाती जणाती नथी तेथी एम लागे छे के ए मंदिर नष्ट थई गयु छ अने आ वेसणी कोईए त्यांथी उपाडी लावी शिवना देवालयमा मूकी दोधी छे. ए देवालयना अधिकारिओनी अजाणताने लीधे आ लेख सही सलामत रहेवा पाम्यो होय एम लागे छे..। मति अन मंदिर बनावनारा गुजराती होवा जोईए ; पंजाबी नहीं. प्रतिष्ठा करनार सूरि पण गुजरातना हता. कारण के दोल्हण अने आल्हण ब्रह्मात्र गोत्र अगर ज्ञातिना हता के जे ज्ञाति गुजरातमां वधारे छे. १८८१ ना सेन्सस रीपोर्ट प्रमाणे पंजाबमां तेज्ञाति जणाती नथी. सरी देवभद्रनो गुजरात साथे संबंध तेमना गुरु अभयदेवना लीधे छे. आ अभयदेवने द पल्लीय ' कहेवामां आवे छे ; अने ते जिनवल्लभ सूरिनी शिष्यसंततिमांना हता. आ जिनवल्लभ ते खरतर गच्छनी पट्टावलीमां कला जे ४३ मां पट्टधर अने युगप्रधान पद्धारी के तेज है.' तेओ एक नवो संप्रदाय जेने अहीं 'संतान, ना विशेषणथी उल्लेखेलो छे ते चलाव्या पछी वि. सं. ११६७ मां स्वर्गस्थ थया हता. तेमना पछी थएला आचार्य जिनदत्तना वखतमां खरतर गच्छन्नी रुद्रपल्लीय शाखानी स्थापना जिनशेखराचार्य वि. सं. १२०४ मां करी हती. तेथी आ लेखमां जणावेला देवभद्रसूरि श्वेतांबर मतना खरतर गच्छनी एक शाखाना हता. जूनी परंपरा प्रमाणे खरतर गच्छनी स्थापना गुजरातना अणहिलवाड पाटणमां थई हती. लेखनी मिति संवत एटले वि. सं. १२९६ फाल्गुण वदि ५, रविवार ' ते डॉक्टर स्क्रम (Dr. Sohram) नी गणना प्रमाणे ई. स. १२४० नी १५ जान्यूआरी बराबर थाय छे. जनरल सर कनिंगहाम जेणे आ लेख प्रथम शोधी काढ्यो हतो तेमणे पोताना आर्किओलॉजिकल रीपोर्टस् (पु. ५ पान १८३) मां ए लेखनी जे नकल आपीछे, ते अधूरी छे. कारण के तेमा 'क्षेत्रगोत्रो' थी 'पुत्राभ्यां अने 'प्रति अहीं आपली लेखनी नकल पंजाब आर्फिआलॉजिकल व्हसें तरफथी मळेली एक सारी छाप उपरथी पाडेली छे, १ जुओ-क्लॅट (klata) इ.एं, पु. १, .पा. २४८ अने २५४.

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