Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 2
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 41
________________ अक १] सोमदेवदारकत नातिवाक्यामृत - - ~~- ~ संक्षिप्त प्रन्थोंका निर्माण हुआ । पुराणोंमें भी लिखा है कि प्रजापतिके उस्क एक लाख अध्यायनाले निवर्ग-शासनके नारद, इन्द्र, बृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज, विशालाक्ष, भीष्म, पराशर, मनु, अन्यान्य महर्पि और विष्णुगुप्त (चाणक्य) ने संक्षिस करके पृथक् पृषक प्रन्योंकी रचना की + । परन्तु इस समय उक्त सब साहित्य प्रायः नष्ट हो गया है। कामपुरुषार्थ पर वात्स्यायनका कामसूत्र, अर्थपुरुषार्थ पर विष्णुगुप्त या चाणक्यका अर्थशास्त्र और धर्मपुरुषार्थ पर मनुके धर्म-शास्त्रका संक्षिप्तसार 'मानवं धर्मशासा'--जो कि भूगु नामक भाचार्यका संग्रह किया हुआ है और मनुस्मृतिके नामसे प्रसिद्ध है--उपलब्ध है। ___ उक्त ग्रन्थों से राजनीतिका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'कौटिलीय अर्थशान 'अभी १३-१४ वर्ष पहले ही उपलब्भ हआ है और उसे मैसूरकी यूनीवर्सिटीने प्रकाशित किया है। यह अवसे लगभग २२०० वर्ष पहले लिखा गया था । सुप्रसिद्ध मौर्यवंशीय सम्राट चन्द्रगुप्तके लिए -जो कि हमारे कथाप्रन्थोंके अनुसार जैनधर्मके उपासक थे और जिन्होंने अन्तमें जिनदक्षिा धारण की थी-आर्य चाणक्यने इस अन्यको निर्माण किया था नन्दवंशका समल उच्छेद करके उसके सिंहासन पर चन्द्रगुप्तको आसीन करानेवाले चाणक्य कितने बढ़े राजनीतिश होंगे, गह कहनेकी आवश्यकता नहीं है। उनकी राजनीतिज्ञताका सबसे अधिक उज्ज्वल प्रमाण यह अर्थशास्त्र है। यह बड़ा ही अद्भुत ग्रन्थ है और उस समयकी शासनव्यवस्था पर ऐसा प्रकाश डालता है जिसकी पहले किसीने कल्पना भी न की थी। इरो पढ़नेसे मालूम होता है कि उस प्राचीन कालमें भी इस देशने राजनीतिमें आश्चर्यजनक उन्नति कर ली थी। इस ग्रन्थमें मनु, भारद्वाज, उशना (शुक्र), बृहस्पति, विशालाक्ष, पिशुन, पराशर, वातव्याधि, कौणपदन्त और बाहुदन्तीपुत्र नामफ प्राचीन आचार्योंके राजनीतिसम्बन्धी मतोंका जगह जगह उल्लेख मिलता है। आर्य चाणक्य प्रारंभमें ही कहते हैं कि पृथिवीके लाभ और पालनके लिए पूर्वाचार्योंने जितने अर्थशास्त्र प्रस्थापित किये हैं, प्रायः उन सबका संग्रह करके यह अर्थशास्त्र लिखा जाता है । इससे मालूम होता है किचाणक्यसे भी पहले इस विपयके अनेकानेक ग्रन्थ मौजूद थे और चाणक्यने उन सबका अध्ययन किया था। परन्तु इस समय उन प्रन्थोंका कोई पता नहीं है। चाणक्यके वादका एक और प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध है जिसका नाम 'नीतिसार' है और जिने संभवतः चाणक्यके ही शिष्य कामन्दक नामक विद्वानने अर्थशास्त्रको संक्षिप्त करके लिखा है। अर्थशास्त्र प्रायः गद्यमें है। परन्तु नीतिसार लोकबद्ध है। यह भी अपने ढंगका अपूर्व और प्रामाणिक ग्रन्थ है और अर्थशास्त्रको समझनेमें इससे बहुत सहायता मिलती है । इसमें भी विशालाक्ष, पुलोमा, यम आदि प्राचीन नीतिग्रन्थकर्ताओंके मतोंका उल्लेख है। + ब्रह्माध्यायसहस्राणां शतं चक्रे स्वबुद्धिजम् । तन्नारदेन शक्रेण गुरुणा भार्गवेण च ॥ भारद्धाजविशालाक्षभीमपाराशरैस्तथा । संक्षिप्तं मनुना चैव तथा चान्यैर्महर्षिभिः॥ पतालमायपोहासं विज्ञाय च महात्मना। संक्षिप्तं मनना चैव तथा चान्यैर्महर्षिभिः।। प्रजानामायुषो ह्रासं विज्ञाय च महात्मना । संक्षिप्तं विष्णुगुप्तेन नृपाणामर्थसिद्धये । ये श्लोक हमने गुजरातीटीकासहित कामन्दकीय नीतिसारकी भूमिका परसे उध्दृत किये हैं। परन्तु उससे यह नहीं मालूम हो सका कि ये किसं पुराणके हैं। *सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ मि. विन्सेण्ट स्मिथ आदि विद्वान् भी इस बातको संभव समझते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्मके उपासक थे। 'त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति' नामक प्राकृत ग्रन्थमें-जो विक्रमकी पाँचवीं शताब्दिके लगभगका है-लिखा है कि मुकुटधारी राजाओंमें सबसे अन्तिम राजा चन्द्रगुप्त था जिसने जिनदीक्षा ली ।-देखो जैनहितैषी वर्ष १३, अंक १२ । ४ सर्वशास्त्रानुपक्रम्य प्रयोगानुपलभ्य च । कौटिल्येनं नरेन्द्रार्थे शासनस्य विधिः कृतः॥ येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजगता च भूः। असणोद्धृतान्याशुतेन शास्त्रमिदं कृतम् ॥ + पृथिव्या लाभे पालने च यावन्त्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचायः प्रस्थापितानि प्रायशस्तानि सहत्यैकमिदमर्थशानं कृतम् । +देखो गुजराती प्रेस वम्बईके 'कामन्दकीय नीतिसार' की भूमिका ।

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