Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4 Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 8
________________ १. कर्मवाद कर्मवाद और इच्छा - स्वातन्त्र्य कर्मविरोधी मान्यताएँ कर्मवाद का मन्तव्य कर्म का अर्थ कर्मबन्ध का कारण कर्मबन्ध की प्रक्रिया कर्म का उदय और क्षय कर्म प्रकृति अर्थात् कर्मफल कर्मों की स्थिति कर्मफल की तीव्रता - मन्दता कर्मों के प्रदेश कर्म की विविध अवस्थाएँ कर्म और पुनर्जन्म २. कर्मप्राभृत प्रस्तुत पुस्तक में कर्म - साहित्य कर्म प्राभृत की आगमिक परम्परा कर्मप्राभृत के प्रणेता कर्म प्राभृत का विषय-विभाजन जीवस्थान क्षुद्रकबन्ध बन्धस्वामित्वविचय वेदना वर्गणा महाबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only '–२६ ७ ११ १२ १३ १४ १५ १५ २१ २२ २२ २२ २६ २७-५९ २७ २८ २९ ३० ४८ ५० ५१ ५६ ५८ www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 406