Book Title: Jain Punjanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Rupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala

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Page 6
________________ ५१०० ५१०० १०१०० श्रीमती लक्ष्मी ध प श्री विमल कुमार जी जैन भारिल्ल १०१०० श्री रमेशचन्द्र जी जेन पोपाल १०१०० श्री कालूराम जी जैन भोपाल १०१०० श्री उमेशचन्द्र सुपुत्र स्व श्री चन्द्रकुमार जी जैन १०१०० श्रीमती प्रभावती मातेश्वरी उमेशचन्द्र जी जैन १०१०० श्री कस्तूरचन्द्र आजाद कुमार जी जैन भोपाल १०१०० श्री मतिगेदी बाई गुना १०१०० कु विनीता जैन सुपुत्री श्री उमेशचन्द्र जी जैन भोपाल १०१०० श्री चौधरी लखमीचन्द्र महेन्द्रकुमार जी जैन भोपाल १०१०० श्रीमति शैलादेवी ध प स्व श्री जमना प्रसाद जी जैन एडवोकेट गुना १०१०० श्रीमति अजु जैन सौगानी भोपाल ५१०० श्रीमति कुसुम पण्ड्या भोपाल श्री राजकुमार रतनलाल जी जैन भोपाल ५१०० श्री कोमल चन्द्र जी जैन भोपाल ५१०० श्रीमति सुशीला बाई ध प श्री श्रीचन्द्र जी जैन भोपाल श्रीमति चतरो बाई जैन भोपाल ५१०० गुप्तदान ह हेमचन्द्र जी जैन भोपाल ५१०० गुप्तदान ४१ ०० गुप्तदान ह श्री अशोक कुमार जी जैन एव अन्य ५१ ०० श्री अभिषेक सुपुत्र श्री डा राजेन्द्र कुमार भारिल्ल ५१०० डॉ रश्मि सुपुत्री डा राजेन्द्रकुमार जो भारिल्ल १८८५८ %D00 जय हो जय हो जिनवाणी की जय हो जय हो जिनवाणी की बज उठी सरस प्रवचन वीणा श्री वीतराग जिनवाणी की । शुभ अशुभ बध-निज ध्यान मोक्ष जय हो वाणी कल्याणी की ।। जय हो ।।१।। अन्तर मे हुई झनझनाहट निज मे निज की प्रतीति जागी । गगो से मोह ममत्व भागा मिथ्या भ्रम इति भिति भागी जडता के घन चकचूर हुये जय जिन श्रुत वीणा पाणी की ।।जय हो ।।२।। रस गध-स्पर्श रूपादिक सब यह पुद्गल की छाया है, यह देह भिन्न है चेतन से पगल की गदी काया है । जग के सारे पदार्थ पर है ध्वनि गुजो केवलज्ञानी की ।। जय हो ।।३।। चेतन का है चैतन्य रूप इसमे है ज्योति अनत भरी सुख ज्ञान वीर्य आनन्द अतुल हैं आत्म शक्ति गुणवत खरी । परमात्म परम पद पाती है चैतन्य शक्ति ही प्राणी की ।।जय हो ।।४।।

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