________________
10
प्रस्तावना
विशालग्रहलोकस्य मूलोकस्य तथैव च । नित्यानां जिनधाम्नांच वर्णनं कृतमत्र सत् ।। माता ज्ञानवती श्लाघ्या माता जिनमतिस्तथा उमयोपुण्यकर्मेदं धन्यवादोचितं सदा ॥
प्रस्तुत पुस्तिका अपने नाम से ही अर्थ को सार्थकता दिखलाती हुई दृष्टिगत होती है । ग्रन्थकर्ता ने ज्योतिर्लोक नाम से इसका नामकरण किया है किन्तु इसमें न केवल ज्योतिर्लोक का ही वर्णन है अपितु मध्यलोक के द्वीप, समुद्रों, नदी, पहाड़ों एवं क्षेत्र विभागों का भी वर्णन है और ये ही नहीं इसमें उन प्रकृत्रिम चैत्यालयों का भी वर्णन है जो कि मध्य लोक में ४५८ की संख्या में सदा शाश्वत विद्यमान हैं।
माधुनिक युग में चन्द्र लोक यात्रा का डिडिम घोष चतुर्दिक सुनाई पड़ता है। वैज्ञानिकों ने वहां जाकर वहां के वायु मण्डल का, वहां की मिट्टी का और वहां पर होने वाली जलवायु का भी अध्ययन किया है। यह भी निश्चित हो चुका है कि चन्द्रलोक में मानव का जाना संभव है और कतिपय सामग्री के सद्भाव में मानव वहाँ जोवित भी रह सकता है।
किन्तु जनाचार्यों ने इस धारणा को सही रूप नहीं दिया है। उनका कहना है कि चाहे आधुनिक वैज्ञानिक अपने आप को