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जैन ज्योतिर्लोक
पहेली है। इस बारे में अभी तक निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अलग २ विद्वानों एवं वैज्ञानिकों ने अपनी बुद्धि एव तर्क के अनुसार अलग २ मत प्रचलित किये हैं। उन सब मतों के अध्ययन के पश्चात् हम इसी निर्णय पर पहुंचते हैं। ब्रह्माण्ड की विशालता के समक्ष मानव एक क्षण भंगुर प्राणी है । उसका ज्ञान सीमित है। प्रकृति के रहस्यों को ज्ञात करने के लिये जो साधन उनके पास उपलब्ध हैं, वे सीमित हैं, अपूर्ण हैं। वैज्ञानिकों के विभिन्न सिद्धांतों को हम रहस्योद्घाटन की अटकलें मात्र कह सकते हैं। वास्तव में कुछ मान्यताप्रां के आधार पर प्राश्रित अनुमान ही हैं।"
इस प्रकार हमेशा ही वैज्ञानिक लोग शोध में ही लगे रहने मे निश्चित उत्तर नहीं दे सकते है।
परन्तु अनादिनिधन जैन सिद्धांत में परंपरागत सर्वज्ञ भगवान ने सम्पूर्ण जगत को केवलज्ञान रूपी दिव्य चक्षु से प्रत्यक्ष देखकर प्रत्येक वस्तु तत्त्व का वास्तविक वर्णन किया है। उनमें कुछ ऐसे भी विषय हैं, जो कि हम लोगों की बुद्धि एवं जानकारी से परे हैं। उसके लिये कहा है किसूक्ष्म जिनोदितं तत्त्वं, हेतुभिर्नेव हन्यते । आज्ञासिद्ध तु तद्ग्राह्य, नान्यथावादिनो जिनाः ॥
१. सामान्य शिक्षा पुस्तक बी० ए० कोसं की १६६७ में छपी।