Book Title: Jain Jyotirloka
Author(s): Motichand Jain Saraf, Ravindra Jain
Publisher: Jain Trilok Shodh Sansthan Delhi

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Page 137
________________ वीर ज्ञानोदयग्र थमाला ८००० हाथ का १ कोस हुआ एवं १ कोस में २ मील मानने से ४००० हाथ का १ मील होता है । एक महायोजन में २००० कोस होते हैं। एक कोस में २ मोल मानने मे १ महायोजन में ४००० मील हो जाते हैं । अतः ४००० मील के हाथ बनाने के लिए १ मील सम्बन्धी ४००० हाथ से गुणा करने पर ४००० ४४००० = १६,०,००,००० अर्थात् एक महायोजन में १ करोड़ साठ लाख हाथ हुये । ૭૪ वर्तमान में रैखिक माप में १७६० गज का १ मील मानते हैं । यदि १ गज में २ हाथ माने तो १७६० ४२=३५२० हाथ का १ मील हुआ । पुनः उपर्युक्त एक महायोजन के हाथ १,६०,००,००० में ३५२० हाथ का भाग देने से १६०००००० ÷ ३५२०=४५४५६५ आये । इस तरह एक महायोजन में वर्तमान माप से ४५४५६५ मील हुये । परन्तु इस पुस्तक में हमने स्थूल रूप से व्यवहार में १ कोस में २ मील की प्रसिद्धि के अनुसार सुविधा के लिये सर्वत्र महायोजन के २००० कोस को २ मील से गुणा कर एक महायोजन के ४००० मील मानकर उसी से ही गुणा किया है । जैन सिद्धांत में ४ कोस का लघु योजन एवं २००० कोस का महायोजन माना है । ज्योतिबिम्ब और उनकी ऊंचाई प्रादि का वर्णन महायोजन से ही माना है ।

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