Book Title: Jain Jyotirloka
Author(s): Motichand Jain Saraf, Ravindra Jain
Publisher: Jain Trilok Shodh Sansthan Delhi

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Page 136
________________ जैन ज्योतिर्लोक ७३ जघन्य भोग भूमियों के बाल के ८ अग्र भागों का ! कम भूमियों के बाल का १ अग्र भाग कर्म भूमियां के बाल के ८ अग्र भागों को १ लीख आठ लीख का १ जू ८ जू का १ जव ८ जव का १ अंगुल इसे ही उत्सेधांगुल कहते हैं । इस उत्सेधांगुल का ५०० गुणा प्रमाणांगुल होता है। ६ उत्सेध अंगुल का १ पाद २ पाद का १ बालिस्त २ बालिस्त , १ हाथ २ हाथ , १ रिक्कू २ रिक्कु , १ धनुष २००० धनुष का १ कोस ४ कोस का १ लघु योजन ५०० योजन का १ महा योजन २००० धनुष का १कोस है । प्रतः १ धनुष में ४ हाथ होने से

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