________________
जैन ज्योतिर्लोक किवाड़ों से संयुक्त दिव्य चन्द्रोपकों से सुशोभित हैं । वे जिन भवन देदीप्यमान रत्नदीपकों से सहित अष्ट महामंगल द्रव्यों से परिपूर्ण वंदनमाला, चमर, क्षुद्र घंटिकामों के समूह से शोभायमान हैं। उन जिन भवनों में स्थान-स्थान पर विचित्र रत्नों से निर्मित नाट्य सभा, अभिषेक सभा एव विविध प्रकार की कोड़ाशालायें बनी हुई हैं।
__ वे जिन भवन समुद्र के सदृश गंभीर शब्द करने वाले मर्दल, मृदंग, पटह आदि विविध प्रकार के दिव्य वादित्रों से नित्य शब्दायमान हैं। उन जिन भवनों में तीन छत्र, सिंहासन, भामंडल और चामरों से युक्त जिन प्रतिमायें विराजमान हैं।
उन जिनेन्द्र प्रासादों में श्री देवी व श्रुतदेवी यक्षी एवं सर्वाह व सनत्कुमार यक्षों की मूर्तियां भगवान के प्राजू-बाजू में शोभायमान होती है । सब देव गाढ़ भक्ति से जल, चंदन, तंदुल, पुष्प, नंवेद्य, दीप, धूप और फलों से परिपूर्ण नित्य ही उनकी पूजा
करते हैं।
चन्द्र के भवनों का वर्णन
इन जिन भवनों के चारों ओर समचतुष्कोण लंबे और नाना प्रकार के विन्यास से रमणीय चन्द्र के प्रासाद होते हैं। इनमें कितने ही प्रासाद मकत वर्ण के, कितने ही कुद पुष्प, चन्द्र, हार