Book Title: Jain Jyotirloka
Author(s): Motichand Jain Saraf, Ravindra Jain
Publisher: Jain Trilok Shodh Sansthan Delhi

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Page 128
________________ जन ज्योतिलोंक ६५ कुरु है । ये उत्तर कुरु, देव कुरु उत्तम भोग भूमि हैं । हरिक्षेत्र एवं रम्यक क्षेत्र में मध्यम भोग भूमि की व्यवस्था है तथा हैरण्यवत, हैमवत क्षेत्र में जघन्य भोग भूमि है। ___ इस प्रकार जम्बूद्वीप को १ मेरु सम्बन्धो ६ भोग भूमियां इसी प्रकार धातकी खण्ड को २ मेरु सम्बन्धी १२ तथा पुष्कराध की २ मेरु सम्बन्धी १२ इस प्रकार--ढाई द्वीप की पांचों मेरु सम्बन्धी--६ +१२+ १२-३० भोग भूमियां हैं। ___ जहां पर १० प्रकार के कल्प वृक्षों के द्वारा उत्तम-उत्तम भोगोपभोग सामग्री प्राप्त होती है उसे भोग भूमि कहते हैं। जंबूद्वीप के अकृत्रिम चैत्यालय जंबूद्वीप में ७८ अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं यथा-सुमेरू पर्वत संबंधि १६ चैत्यालय हैं। सुमेरू पर्वत की विदिशा में ४ गज दंत के ४ चैत्यालय हैं। हिमवदादि षट् कुलाचल के ६ चैत्यालय हैं। विदेह के १६ वक्षार पर्वतों के १६ चैत्यालय हैं। ३२ विदेहस्थ विजया के ३२ चैत्यालय हैं। भरत, ऐरावत के २ विजयाध के २ चैत्यालय हैं। देवकुरु, उत्तर कुरु के जंबू, शाल्मलि २ वृक्षों के २ चैत्यालय हैं। इस प्रकार १६+४+६+१६+३२+२+२=७८ जिन चैत्यालय जम्बूद्वीप संबंधि हैं।

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