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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला २ सूर्य १ दिन-रात में लगाते हैं । अर्थात्-जब १ सूर्य भरत क्षेत्र में रहता है तब दूसरा सूर्य ठीक सामने ऐरावत क्षेत्र में रहता है। जब १ मूर्य पूर्व विदेह में रहता है, तब दूसरा पश्चिम विदेह में रहता है। इस प्रकार उपयुक्त अंतर से (६६६४० योजन) गमन करते हुये प्राधी परिधि को १ सूर्य एवं आधी को दूसरा सूर्य अर्थात् दोनों मिलकर ३० मुहूर्त (२४ घटे) में १ परिधि को पूर्ण करते हैं। __ पहली गली से दूसरी गली की परिधि का प्रमाण १७६६ योजन (४३००००० मील) अधिक है। अर्थात् ३१५०८६+ १७१६=३१५१०६६८ योजन होता है। इसी प्रकार आगे-आगे की वीथियों में क्रमशः १७६६ योजन अधिक-२ होता गया है, यथा-३१५१०६३+१७३६ योजन=३१५१२४३५ योजन प्रमाण तीसरी गली की परिधि है। इसी प्रकार बढ़ते-२ मध्य को १२ वी गली की परिधि का प्रमाण-३१६७०२ योजन (१२६६८०८००० मील) है । तथैव मागे वृद्धिंगत होते हुये अंतिम बाह्य गली की परिधि का प्रमाण-३१८३१४ योजन (१२७३२५६००० मील) है।
दिन-रात्रि के विभाग का क्रम प्रथम गली में सूर्य के रहने पर उस गलो की परिधि (३१५०८६ योजन) के १० भाग कोजिये । एक-एक गली में २-२ सूर्य भ्रमण करते हैं । अतः एक सूर्य के गमन संबंधि ५ भाग हुये।