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जंग ज्योतिनोंक हैं । तिगिच्छ सरोवर से हरित् एवं सीतोदा, केसरी सरोवर से सीता पौर नरकांता, महापुडरीक सरोवर से नारी व स्प्यकूला तथा पुंडरीक नामक अंतिम सरोवर से रक्ता, रक्तोदा एवं स्वर्णकूला ये तीन नदियां निकली है। इस प्रकार ६ पर्वतों पर स्थित ६ सरोवरों से १४ नदियां निकली हैं। प्रत्येक सरोवर से २-२ एवं पप तया महापुडरीक सरोवर से ३-३ नदियां निकली हैं। ___ यह गंगा पौर सिंधु नदी विजयाचं पर्वत को भेदती हुई जाती हैं। प्रतः भरत क्षेत्र को ६ खण्डों में बांट देती हैं । विजयाचं पर्वत के उस तरफ (उत्तर में) अर्थात् हिमवन पौर विजयाध के बीच ३ खंड हुए हैं। वे तीनों म्लेच्छ खण्ड कहलाते हैं। तथा विजयार्ष के इस तरफ (दक्षिण में ) ३ खंड हैं, उनमें माजू-बाजू के दो म्लेच्छ खंड पोर बीच का आर्य खंड है । इन पांचों म्लेच्छ खंडों के निवासी जाति, खान-पान अथवा प्राचरण से म्लेच्छ नहीं हैं किन्तु मात्र वे क्षेत्रज म्लेच्छ हैं।
गंगा नदी का वर्णन पन सरोवर से गंगा नदी निकलकर पांच सौ योजन पूर्व की मोर जाती हुई गंगाकूट के २ कोश इधर से दक्षिण की पोर मुड़कर भरतक्षेत्र में २५ योजन पर्वत से (उसे छोड़कर) यहां पर सवाछ: (६१) योजन विस्तीर्ण, प्राधा योजन मोटी और प्राधा योजन ही पायत वृषभकार जिह्निका )नाली) है। इस नाली में प्रविष्ट