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मां ने ५ मन्तानों को जन्म दिया। मां म्पांबाई से पूर्व आपके पिताजी की प्रथम पन्नी से दो पुत्रियों का जन्म हुआ था जिनका नाम गुलाबवाई एवं चतुरमणी वाई है । इस प्रकार आप के ३ भाई एवं : बहिन है।
आपके भाई श्री इन्दरचन्द का विवाह सन् १९७० में हो चुका है। आपके यहां मोने-चांदी का व्यापार होता है। ___ धनाड्य परिवार होने से मनी माधन उपलब्ध होते हुए भी वंगग्यपूर्ण भावनाओं के कारण, बिना किसी की प्रेरणा के, १८ वर्ष की अल्पायु में मन् १९५८ में अापने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया । व्रत लने के बाद लगभग १० वर्ष तक घर रह कर बड़ी ही कुशलता में व्यापार करते हुए धर्माराधन में संलग्न रहकर सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में हमेशा मागे रहे हैं।
पुण्योदय से सन् १९६७ में पूज्य विदुपीरत्न आयिका श्री ज्ञानमती माता जी का सनावद में चतुर्मास हुआ । चातुर्मासोपरान्त पूज्य माता जी ने प्राचार्य श्री शिवसागर जी महाराज के संघ में पुनः पदार्पण किया।
पूज्य माताजी की प्ररणा एवं वक्तृत्व में प्रभावित होकर पाप भी संघ में अध्ययनार्थ रहने लगे । कुशाग्र बुद्धि होने से पल्प समय में ही पूज्य माताजो मे अध्ययन करके आपने शास्त्री एवं बगीय सं. शि. परिषद की न्यायतीर्थ परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है।
समय-समय पर आप घर भी जाते रहते हैं। आपकी ही प्रेरणा से प्रापके पिताजी ने २५ हजार रु० का दान निकाल कर एक ट्रस्ट का स्थापना २ वर्ष पूर्व की है। उस ट्रस्ट से तनावद में ही दो धार्मिक पाठशालायें चल रही हैं।