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सुपुत्री-श्री शांति देवी-विवाहित , , श्रीमती देवी ,
, मनोवती देवी-पू० प्रायिका श्री अभयमतीजी , , कुमुदिनी देवी-विवाहित
कु. मालती देवी-बालब्रह्मचारिणी ___ श्री कामिनी देवी-विवाहित " कु० माधुरी -अविवाहित
, त्रिशला , पू० श्री ज्ञानमती माताजी ऐसे वृक्ष से फलित हुई हैं जिसकी प्रत्येक शाखा पर त्याग और तपस्या के मंगल पुष्प विकसित हुये हैं । कुछेक पुष्प तो पककर त्याग और तपस्या के साक्षात् फल बनकर मानव कल्याण एवं आत्मोन्नति में लगे हुये हैं और कुछ पुप्प प्रभी विकसित होने हैं उनका भविष्य भी पूर्णमासी के चन्द्रमा की ज्योत्सना के समान उज्ज्वल ही प्रतीत होता है। ___ माता मोहिनी देवी ने अपने उदर से ऐसी आध्यात्मिक निधियों का सृजन कर आत्मिक उपवन को संजोया है जिनके द्वारा आत्मज्ञान का दीप एवं रत्नत्रय-धर्म का सूर्य सदा आलोकित होता रहा है । आज अखिल भारतवर्षीय दि० जैन समाज का कौन-सा ऐसा व्यक्ति होगा जो प० पू० प्राचार्य श्री धर्म सागर जी संघस्था-आध्यात्मिक ज्ञान से ओत-प्रोत, परमविदुषीरत्न पू० प्रायिका श्री ज्ञानमती जी के नाम से परिचित न हो। जिन्होंने अपने दर्शन, ज्ञान एवं चरित्र से अपनी मातु श्री की कोख के गौरव को द्विगुणित ही नहीं किया, अपितु उसकी महिमा में चार चांद लगा दिये हैं।
मातुश्री ने बालिका "मना' में ऐसे धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण किया जिससे प्राज वह विशाल वृक्ष के रूप में स्थित